देश को आजादी दिलाने में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने बलिदान दिया है। लेकिन इतिहास के पन्नों से उनका नाम कहीं लुप्त हो गया है। उन्हीं में से एक हैं सरदार अजीत सिंह। उन्होंने आजादी के जिस दिन के लिए क्रांति की, उसी दिन देश को अलविदा कह दिया।
अजीत सिंह का जन्म 23 फरवरी 1881 को जिला जालंधर के खटकड़ कलां गांव में हुआ था। भगत सिंह के साथ उनका गहरा रिश्ता था। भगत सिंह के पिता किशन सिंह उनके बड़े भाई थे। अजीत सिंह के लिए बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि ‘ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं’।
उन्होंने किसान कानूनों के खिलाफ ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ आंदोलन चलाया था। 1907 में अंग्रेज़ सरकार तीन किसान विरोधी कानून लेकर आई, जिसका सबसे ज्यादा विरोध पंजाब में हुआ और सरदार अजीत सिंह ने आगे बढ़कर इस विरोध में हिस्सा लिया। उन्होंने पंजाब के किसानों को एकजुट किया और जगह-जगह सभाएं की, जिसमें पंजाब के वरिष्ठ कांग्रेस नेता लाला लाजपत राय को बुलाया गया।
मार्च 1907 को लायलपुर की सभा में पुलिस की नौकरी छोड़ आंदोलन में शामिल हुए लाला बाँके दयाल ने ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ शीर्षक से एक कविता सुनाई। बाद में यह कविता इतनी लोकप्रिय हुई कि उस किसान आंदोलन का नाम ही ‘पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन’ पड़ गया।
उन आंदोलनों के बाद अंग्रेज सरकार ने तीनों कानूनों को वापस ले लिया, लेकिन लाला लाजपत राय और अजीत सिंह को छह महीने के लिए बर्मा की मांडले जेल में डाल दिया। मांडले जेल से निकलने के बाद अजीत सिंह ने दिसंबर 1907 में आयोजित हुई सूरत कांग्रेस में भाग लिया। वहां लोकमान्य तिलक ने अजीत सिंह को ‘किसानों का राजा’ कहकर एक ताज पहनाया। उनकी याद में डलहौजी के पंजपुला में एक समाधि बनाई गई है, जो अब एक मशहूर पर्यटन स्थल है।
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अरबिंदो घोष
15 अगस्त 1872 को कोलकाता में एक वीर स्वतंत्रता सेनानी का जन्म हुआ। नाम था अरबिंदो घोष, जिन्होंने अपना सारा जीवन भारत को आजादी दिलाने और विकास की दिशा में पहुंचाने के लिए समर्पित कर दिया था। अरबिंदो का एक ही लक्ष्य था कि कोई भी व्यक्ति बेड़ियों में ना रहे।
मौलवी लियाकत अली
ब्रिटिश राज में कुछ वीर सेनानी ऐसे थे जिनका नाम जब भी लिया जाता था, तो उनसे अंग्रेज कांप उठते थे। उन्हीं में से एक थे मौलवी लियाकत अली। वे 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले नेताओं में से एक थे। उन्होंने प्रयागराज को 7 जून 1857 को अंग्रेजों से आजाद कराया था। उनके नाम में इतनी दहशत थी कि जब उन्होंने इलाहाबाद की सदर तहसील पर कब्जा किया तब आधे से ज्यादा अंग्रेज भाग निकले थे। फिर भी कई अंग्रेज सैनिक और अफसर मारे गए थे।
इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो उनका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाकर आजादी का झंडा फहराने वाले मौलवी लियाकत अली की निशानियां आज भी इलाहाबाद संग्रहालय में रखी गई हैं।
इनके अलावा यहां जानिए कुछ महिला स्वतंत्रता सेनानी के बारे में
गुलाब कौर
गुलाब कौर पंजाब की वह जांबाज बेटी थीं, जिन्होंने भारत की आजादी के लिए अपने पति तक को छोड़ दिया था।
दुर्गावती देवी
दुर्गावती देवी भले ही भगत सिंह, सुख देव और राजगुरू की तरह फांसी पर न चढ़ी हों, लेकिन उनके साथ कंधें से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं। वह स्वतंत्रता सेनानियों के हर आक्रमक योजना का हिस्सा बनीं।
चंद्रप्रभा सैकियानी
चंद्रप्रभा सैकियानी ने न केवल लड़कियों की शिक्षा के लिए काम किया, बल्कि उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने और स्वतंत्रता आंदोलन को उन तक पहुंचाने के लिए पूरे राज्यभर में साइकिल से यात्रा की।
अक्कम्मा चेरियन
अक्कम्मा चेरियन केरल की “रानी लक्ष्मीबाई” के रूप में जानी जाती हैं। उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जेल में बंद नेताओं की रिहाई के लिए बड़े पैमाने पर रैलियां आयोजित कर शासकों पर दबाव डालने के लिए उन्हें याद किया जाता है।
उषा मेहता
उषा मेहता ने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी और स्वतंत्रता के बाद वह गांधीवादी दर्शन के अनुरूप महिलाओं के उत्थान के लिए प्रयासरत रहीं।
बसंती देवी
बसंती देवी भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता थीं। उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई और स्वतंत्रता के बाद सामाजिक कार्य जारी रखा।
रामदेवी चौधरी
रामदेवी चौधरी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थीं। उड़ीसा के लोग उन्हें ‘माँ’ कहते थे। वह अपने पति के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुई थीं।
सुधा महादेव जोशी
सुधा महादेव जोशी गोवा की मुक्ति के स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख नेता थीं। ये सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेती थीं। सुधाताई ने 2 वर्ष तक कारागार की सजा भी भोगी।