‘Walking Saint’ के नाम से पहचाने जाने वाले विनोबा भावे ने अकेले ही 1.5 मिलियन से ज्यादा कृषि योग्य एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था, जिसे बाद में उन्होंने इसे गरीबों को उपहार में दे दिया था।
उन्होंने बाद में लिखा, “मैंने जमीन मांगने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, जैसा कि एक बेटा अपने पिता के लिए करता।”
भूदान आंदोलन के दौरान उन्होंने बहुत बड़े काम किए थे। लेकिन, उनके बारे में यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि उन्होंने चंबल के 17 खूंखार डकैतों को हिंसा को छोड़ने के लिए राजी किया था।
उन्होंने उन्हें कहा था कि, “यह वह भूमि है जिसने बहादुर डकैतों को जन्म दिया है। उनमें और दूसरे आदमियों में फर्क सिर्फ इतना सा है कि उनकी ट्रेन गलत ट्रैक पर आ गई है। मुझे लगता है कि वे दिल्ली के डाकुओं से बेहतर आदमी हैं। शहरों के सभ्य लोगों की तुलना में उनके बीच हृदय परिवर्तन हासिल करना आसान है, जिन्होंने अपने दिलों पर व्यक्तिगत स्वार्थ की एक कठोर परत बना ली है। मैं चाहता हूं कि वे मेरा जवाब दें और आत्मसमर्पण करें। डकैती का समाधान समर्पण में है, झगडों में नहीं। केवल अहिंसा ही हमें डकैती की समस्या को हल करने में मदद कर सकती है।”
1958 में विनोबा भावे, प्रथम मैग्सेसे पुरस्कार विजेता थे। भावे को “भारत में एक नई तरह की सामाजिक क्रांति के प्रचार” के प्रति समर्पण के लिए सामुदायिक नेतृत्व पुरस्कार मिला। इसके अलावा उन्हें 1983 में, उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।
ये भी पढ़े सूर्यकुमार यादव का वाराणसी की गलियों से क्रिकेट के मैदान तक का सफर !