आजादी के बाद सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आने वाली पार्टी कांग्रेस ही थी, एक वक्त था जब कांग्रेस को केंद्र की सत्ता में पूरे 25 सालों तक कोई सीधी टक्कर देने वाला भी नहीं था लेकिन आज आलम यह है कि केवल 3 राज्यों की सत्ता में ही कांग्रेस की मौजूदगी है।
अगर यही आंकड़ा उत्तर प्रदेश का निकाला जाए तो उत्तर प्रदेश में पिछले दस वर्षों में कांग्रेस का वोट प्रतिशत केवल घटा ही है। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 28 सीट और 11.6 फीसदी वोट मिला, इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दो सीट जीती और उसे 7.5 प्रतिशत वोट मिला। इसके बाद वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सात सीट और 6.25 फीसदी वोट मिला, इतना ही नहीं 2019 के लोकसभा में भी वोट प्रतिशत इतना ही रहा और इसका अंदाजा तो इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक वक्त पर कांग्रेस की ही सीट कहलाए जाने वाली ‘अमेठी’ से भी कांग्रेस को 2019 लोकसभा चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा था।
इसी के बीच कांग्रेस उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव रणनीति को लेकर दोराहे पर आकर खड़ी हो गई है। कांग्रेस इस वक्त इन प्रयास में लगी हुई है कि भाजपा को कैसे भी करके पश्चिम बंगाल की तरह उप्र में भी शिकस्त दिला सके, लेकिन ऐसे में कांग्रेस को इस बात का ध्यान रखने की भी आवश्यकता है कि कहीं भाजपा को शिकस्त देने के चक्कर में कांग्रेस बंगाल की तरह यूपी में भी खुद को ‘खत्म’ ना कर बैठे।
बताया जा रहा है कि अपना वर्चस्व बचाए रखने और भाजपा को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस चुनावी रणनीति को लेकर दूसरे गैर भाजपा दलों के रुख का इंतजार कर रही है। बता दें कि कांग्रेस के अंदर एक बड़ा तबका चुनावी गठबंधन की वकालत कर रहा है।
वहीं इसपर यूपी कांग्रेस के कई नेताओं का कहना है कि पार्टी अकेले चुनाव लड़ती है, तो पिछला प्रदर्शन दोहराना भी मुश्किल होगा लेकिन अभी तक गठबंधन को लेकर कोई तस्वीर नहीं बन पाई है, जिसके चलते पार्टी स्वयं को अकेले चुनाव मैदान में उतरने के लिए तैयार कर रही है।
यूपी कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का इसपर यह कहना है कि पार्टी अपनी मजबूत सीट की पहचान कर संभावित उम्मीदवारों से चर्चा कर रही है। उनका कहना है कि इस वक्त पार्टी अपने मजबूत चेहरों पर गहन विचार कर रही है, इसी को देखते हुए वर्ष 2017 के चुनाव में जिन सीट पर पार्टी दूसरे नंबर पर रही या वर्ष 2012 में जीती थी, उन उम्मीदवारों से चर्चा जारी है और उन्हें अभी से चुनाव की तैयारियों के लिए कहा जा रहा है।
इसी बीच पार्टी के उम्मीदवारों की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों में भले ही पार्टी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा लेकिन कई सीटें ऐसी थी जहां पार्टी को अच्छे वोट मिले थे, लेकिन ऐसे में पार्टी के समक्ष यह चुनौती खड़ी हो गई है कि वह उम्मीदवार इस बार चुनावों में उतरने के लिए राजी ही नहीं है और ऐसे में उनकी जगह नए और मजबूत प्रत्याशी की तलाश करना यह भी पार्टी के लिए बड़ी जिम्मेदारी रहेगी।
उन्होंने कहा कि, इससे एक बात तो साफ है कि पार्टी को अपनी स्थिति का एहसास हो जाएगा कि पार्टी कहां पर खड़ी है और गठबंधन की स्थिति में भी कांग्रेस ऐसी सीट पर ही दावेदारी करेगी।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि अगर पश्चिम बंगाल के बाद भाजपा को उत्तर प्रदेश में भी शिकस्त मिल जाती है, तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ के चुनावों में मिल सकता है क्योंकि यहां कांग्रेस को भाजपा से सीधा ही मुकाबला करना है। वहीं एक नेता का इसपर कहना है कि
अगर बड़े फायदे के लिए कांग्रेस को उप्र में कम सीटों पर भी चुनाव लड़ना पड़े तो लड़ना चाहिए क्योंकि इसमें कोई नुकसान नहीं है।
बताते चलें कि जहां एक तरफ कांग्रेस का एक तबका गठबंधन के पक्ष में है, तो वहीं इन सब के उलट पार्टी के अंदर एक बड़ा तबका अकेले चुनाव लड़ने की वकालत कर रहा है। इन नेताओं का यह कहना है कि कांग्रेस को अगर पुनः दिल्ली में सत्ता पर काबिज होना है, तो सबसे पहले खुद को उप्र में मजबूत करना होगा।