उत्तर प्रदेश में अब कुछ महीनों में विधान सभा चुनाव होने वाला है। और ठीक चुनाव से पहले बीजेपी ने अलीगढ़ में जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम से यूनिवर्सिटी खोलने का फैसला लिया है और आज उसी का शिलान्यास करने प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री अलीगढ़ आयेगे। इस शिलान्यास से बीजेपी ने कई समीकरण पर निशाना लगाया है।
इतिहास के उन पन्नो को भुला दिया गया जहाँ जहाँ राजा महेंद्र प्रताप सिंह को याद किया गया था।वो राजा जिसने सारी बातों से ऊपर उठ कर शैक्षिक-सामाजिक परिवर्तन के सपने को साकार करने के लिए अपनी जमीन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए दान दे दिया था।और अलीगढ़ मुस्लिम यूनवर्सिटी से उसे जो संम्मान की आशा थी वो धीरे धीरे धूमल हो गयी। अब इस राजा के नाम पर बीजेपी अलीगढ़ मे नई यूनिवर्सिटी की नींव रखने जा रही है,जिसका नाम राजा महेंद्र प्रताप यूनिवर्सिटी रखा जाएगा। इसकी आधारशीला स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रखेगे।इसी के साथ प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस संकल्प को पूरा करेगा जो उन्होंने 2014 के चुनाव में लिया था।
इस शिलान्यास से मोदी जी ने 2022 में विधानसभा चुनाव का बिगुल फूक दिया है। और बीजेपी की तरफ से बैटिंग में उतरने का एलान कर दिया है। इस शिलानान्यास से बीजेपी ने जाट वोट बैंक को अपने तरफ खीचना का मन बना लिया है। माना जाता है कि किसान आंदोलन को जाटो का समर्थन मिलने से बीजेपी को नुकसान हो सकता है इसी बात को ध्यान में रख कर बीजेपी ने ये दावा खेला है।
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को राजा जी ने अपनी संपत्ति दान दे दी थी। उस यूनिवर्सिटी ने उनका बिल्कुल ख्याल नही रखा, आज यूनिवर्सिटी के इतिहास में उसके निर्माण के लिए केवल सैय्यद अहमद खान के योगदान का जिक्र है, राजा महेंद्र को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्थापना योगदान में कोई स्थान नही दिया। इस बात से नाराज़ हो कर 2014 में योगी आदित्यनाथ ने ये संकल्प लिया था कि वो राजा महेंद्र प्रताप को वो गौरव दिलवा के रहेगे जिसके वो असल मे हकदार है।
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जानिए कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह
आज देश मे जो दो बड़ी यूनिवसिर्टी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी और बनारस की काशी विश्विद्यालय की नींव राजाओ की भूमि पर रखी गयी है। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ने अपने दानकर्ता को भुला दिया लेकिन मदन मोहन मालवीय जी ने सदैव काशी नरेश के योगदान को सदैव सिर माथे रखा।
साल 1914 के प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान वह अफगानिस्तान गए थे. 1915 में उन्होंने आज़ाद हिन्दुस्तान की पहली निर्वासित सरकार बनवाई थी.” बाद में सुभाष चंद्र बोस ने 28 साल बाद उन्हीं की तरह आजाद हिंद सरकार का गठन सिंगापुर में किया था. एक समय उन्हें नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था.