सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में ‘टू-फिंगर टेस्ट’ के इस्तेमाल की निंदा करते हुए इस पर रोक लगा दी है। इस तरह के टेस्ट करने वाले व्यक्तियों को दोषी ठहराया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। जो ऐसा करता है, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। इस तरह का टेस्ट पीड़िता को दोबारा यातना देने जैसा है।’
WHO ने पहले ही टू-फिंगर टेस्ट को अनुचित बताया है। WHO ने कहा था कि ‘रेप के केस में इस टेस्ट से सब कुछ पता नहीं चलता है। टू-फिंगर टेस्ट मानवाधिकार उल्लंघन के साथ ही पीड़िता के लिए दर्द का कारण बन सकता है। ये यौन हिंसा जैसा है, जिसे पीड़िता दोबारा अनुभव करती है।’
यह टेस्ट उस वक्त करना जरूरी हो जाता है, जब गुप्तांग में से रक्त ज्यादा निकल रहा हो, या किसी प्रकार का इंफेक्शन हो। केवल कुछ मामलों में इस टेस्ट को यह देखने के लिए किया जाता है कि, अंदर किसी प्रकार का घाव तो नहीं है। लेकिन कई जगहों पर इसे रेप सर्वाइवर के लिए किया जानें लगा था।
2013 में, शीर्ष अदालत ने इसे गलत बताते हुए इसपर बैन लगा दिया, लेकिन उसके बावजूद इसे कई जगहों पर किया जाता था। जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने ‘टू-फिंगर टेस्ट’ को पूरी तरह से रोक दिया है।
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