भारतीय टेबल टेनिस खिलाड़ी भाविनाबेन पटेल टोक्यो में चल रहे पैरालंपिक के फाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया है. मेडल पक्का कर चुकीं 34 वर्षीय भाविना अब गोल्ड से बस एक कदम दूर हैं. ओलंपिक और पैरालंपिक खेलों में अब तक किसी भी भारतीय महिला ने गोल्ड नहीं जीता है और अब भाविना के पास सुनहरा अवसर है. गुजरात के वडनगर में जन्मीं भाविना को पैरालंपिक तक का सफर आसान नहीं रहा है. उन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत ममें बदल के ये मुकाम हासिल किया हैं.
भाविना को सिर्फ 12 महीने की उम्र में पोलियो हो गया था. उनका जन्म गुजरात के वडनगर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ. जब भाविना चौथी क्लास में पहुंची तो उनके माता-पिता सर्जरी के लिए आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम ले गए. भारतीय खेल प्राधिकरण के अनुसार शुरुआत में भाविना ने पोलियो रोग की गंभीरता को अनदेखा किया और उचित देखभाल नहीं की. इससे उनकी बीमारी बढ़ती चली गयी.
भाविना ने अपने गांव में ही कक्षा 12 तक पढ़ाई की और उसके बाद उनके पिता ने साल 2004 में ब्लाइंड पीपुल्स एसोसिएशन, अहमदाबाद में दाखिला करा दिया. यहां पर भाविना ने तेजलबेन लाखिया की देखरेख में एक कंप्यूटर कोर्स किया और गुजरात विश्वविद्यालय से पत्राचार के माध्यम से स्नातक की पढ़ाई की. यहां भाविना को पता चला कि उनके संगठन में खेल की गतिविधियां भी होती है. इसके बाद भाविना अपने कोच ललन दोषी से फिटनेस ट्रेनिंग लेनी शुरू की और धीरे-धीरे टेबल टेनिस खेल उनका जुनून बन गया.
तीन साल बाद ही 2007 में भाविना ने बेंगलुरू में पैरा टेबल टेनिस नेशनल में अपना पहला गोल्ड मेडल जीता. उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत जॉर्डन से की थी लेकिन पहला पदक जीतने में थोड़ा समय लगा. पटेल ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में भाग लिया था लेकिन वह क्वार्टर फाइनल में हार गईं. भाविना का पहला अंतरराष्ट्रीय मेडल साल 2011 में थाईलैंड ओपन में आया जहां उन्होंने सिल्वर जीता. इसके बाद उन्होंने 2013 में पहली बार एशियाई क्षेत्रीय चैंपियनशिप में भी सिल्वर मेडल जीता.
सिंगल्स में जीत हासिल करने के बाद भाविना डबल्स में भी हाथ आजमाने लगी. डबल्स में उन्होंने सोनलबेन पटेल को अपना जोड़ीदार बनाया. भाविना ने आखिरकार 2019 में बैंकॉक में सिंगल्स में अपना पहला गोल्ड जीता. डबल्स में भी उन्हें गोल्ड मेडल मिला. भाविना ने एशियन पैरा गेम्स 2018 में भी मेडल जीता है. पटेल को रियो 2016 पैरालंपिक खेलों के लिए भी चुना गया था, लेकिन साई के अनुसार तकनीकी कारणों से खेलने में सक्षम नहीं थे. लेकिन उन्होंने टोक्यो पैरालिंपिक 2020 के लिए क्वालीफाई किया और ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.