हाल ही में दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के ऐतिहासिक ‘दरबार हॉल’ में ‘पद्म पुरस्कारों’ के विजेताओं को सम्मानित किया गया था। इसमें कई बड़ी हस्तीयों का नाम शामिल था। विजेताओं में एक नाम कर्नाटक की रहने वाली ट्रांसजेंडर फोक आर्टिस्ट मंजम्मा जोगती का भी था। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कला के क्षेत्र में योगदान के लिए मंजम्मा को प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया। आपको बता दें कि वो एक लोक नृत्य आर्टिस्ट हैं।
मंजम्मा का अवॉर्ड लेने का तरीका काफी अलग था। जब वो अवॉर्ड लेने से पहुंची तब उन्होंने सबसे पहले राष्ट्रपति की नजर उतारी। यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया और उन्हें कई चुनौतियों कासामना करना पड़ा। कम उम्र से उन्होंने काफी संघर्ष झेला और मंजुनाथ से मंजम्मा बनीं। मंजम्मा का जन्म कर्नाटक के बेल्लारी जिले में मंजुनाथ शेट्टी के रूप में हुआ था। वह एक फोक आर्टिस्ट हैं और जोगप्पा के एक लोक नृत्य, जोगती नृत्य के लिए जानी जाती हैं।
कम उम्र से ही उन्होंने खुद को एक महिला के रूप में पहचानना शुरू कर दिया था। उनके एक इंटरव्यू के मुताबिक, वह तौलिये को स्कर्ट की तरह लगाकर घूमा करती थीं। अपनी मां के साथ घर के कामों में हाथ बंटाती थीं और अपनी क्लास की लड़कियों के साथ रहना, डांस करना और तैयार होना उन्हें बहुत पसंद था। ऐसे ही करते-करते 15 साल की उम्र में उन्होंने खुद को एक महिला के रूप में पूरी तरह स्वीकार कर लिया था। हालांकि उनके घरवाले इस बात से अंजान थे। वह मंजम्मा को ठीक करने के लिए डॉक्टरों के पास ले गए।
इसके बाद वह मंजम्मा को एक आश्रम ले गए, वहां एक पंडित ने बताया कि उन्हें देवी शक्ति का आशीर्वाद मिला है। उन्होंने उस इंटरव्यू में बताया, ‘आश्रम में उन पंडित से मिलने के बाद, मेरे पिता ने कहा मैं उनके लिए मर चुकी हूं।’ साल 1975 में उनके माता-पिता उन्हें हॉस्पेट स्थित मंदिर ले गए। यहां वह मंजुनाथ शेट्टी से मंजम्मा जोगती बन गईं। देवी येलम्मा, जोगप्पा या जोगती के भक्त मुख्य रूप से ट्रांस लोग हैं जो खुद को देवी से विवाहित मानते हैं।
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उन्होंने बताया, ‘दीक्षा की रस्म में मेरा उडारा काटा गया। मुझे एक स्कर्ट, ब्लाउज, चूड़ियां और शादी का धागा दिया गया। इसके बाद मुझे सिर्फ मेरी मां की चीखें याद हैं, क्योंकि उस दिन उन्होंने अपने बेटे को खो दिया था। उनका बेटा उनके लिए मर चुका था।’ मंजम्मा बनने पर उनके माता-पिता ने न उन्हें स्वीकार किया और न कभी घर आने दिया।
उनके इंटरव्यू के मुताबिक, घरवालों की इस बेरुखी से परेशान होकर मंजम्मा ने मरने तक की कोशिश की। उन्होंने जहर पीकर अपनी जान देने की कोशिश की थी। इसके बाद उन्होंने घर छोड़ा और सड़कों पर भीख मांगना शुरू किया। इसी दौरान एक बार कुछ आदमियों ने उनका यौन शोषण किया और उनके पैसे छीन लिए।
उन्होंने बताया कि, एक बस स्टैंड पर खड़े-खड़े मंजम्मा ने एक पोस्टर देखा, जिसमें एक पिता-बेटा एक परफॉर्मेंस दे रहे थे। पिता लोकगीत गा रहे थे और बेटा सिर पर एक पॉट रखकर नृत्य कर रहा था। मंजम्मा ने बताया था, ‘यह जोगती नृत्य था और मैं हमेशा से ही इससे प्रभावित रही थी। इसलिए मैं परफॉर्मेंस देने वाले पिता से मिलने पहुंची। उनका नाम बसप्पा था, उनसे पूछा कि क्या वह मुझे यह सिखाएंगे और वह मान गए। मैं प्रतिदिन उनके यहां जाकर यह सीखती थी। चोम्बू (पॉट) को सिर पर बैलेंस करना काफी दिलचस्प होता था और कभी-कभी तो देवता की मूर्ति को सिर पर संभालना, चलते हुए मुश्किल होता था।’
इस कला ने उनका जीवन बदल दिया। मंजम्मा को 2010 में कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था और उनकी जीवन कहानी हावेरी जिले के कर्नाटक लोक विश्वविद्यालय में स्कूल पाठ्यक्रम और कला स्नातक पाठ्यक्रम का हिस्सा है। मंजम्मा कर्नाटक जनपद अकादमी की पहली ट्रांसजेंडर अध्यक्ष भी बनीं और कला के क्षेत्र में उनके इसी योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म श्री जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया।