एक वक्त था जब कहा जाता था कि महिलाएं केवल घरेलू कामों के लिए बनी हैं। लेकिन अगर इतिहास के पन्नों को उठा कर देखें तो अपनी स्वतंत्रता और मातृभूमि की रक्षा के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने अपना तन मन धन सब कुछ निछावर कर दिया और वीरता की एक अद्भुत मिसाल कायम की। केवल रानी लक्ष्मीबाई ही नहीं, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, लक्ष्मी सहगल जैसी इतिहास में और भी कई महिलाएं रही हैं, जिन्होंने आज़ाद भारत के लिए सारा ऐशो आराम त्याग दिया।
उस वक्त से नारी को सशक्त बनाने का सिलसिला चला आ रहा है। अब महिलाएं खेल से लेकर राजनीति तक हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं। आज के समय की महिलाओं की स्थिति में काफी परिवर्तन आ चुका है। अब महिलाएं केवल घर के काम ही नहीं बल्कि चांद तक भी जा चुकी हैं। वे पुरुष के साथ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर साथ दे रही हैं।
नारी को सशक्त बनाने के लिए उनकी पढ़ाई पर भी बहुत ध्यान दिया जाता है। इसी कड़ी में ओडिशा के कालाहांडी में रहने वाली मिनुश्री मधुमिता और अमृता जगतदेव ने भी एक अलग मिसाल कायम की हैं। बचपन में साथ खेलने वाली दो दोस्त एक सपने को पूरा करने के लिए कब साथ काम करने लग जाएंगी इन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा। एक साथ स्कूल करने के बाद मिनुश्री मधुमिता और अमृता जगतदेव अलग-अलग रास्तों पर चलने लगीं। इन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एक छोटा सा विचार इनको दोबारा साथ लेकर आ जाएगा। जहां एक तरफ मिनुश्री ने केमिस्ट्री के विषय में आगे बढ़ने लगी, तो वहीं दूसरी तरफ अमृता फायनेंस की पढ़ाई कर इलेक्ट्रिकल इंजीनियर बन गईं। दोनों अपने करियर की ऊंचाइयों को छूने लगी। लेकिन दोनों एक वक्त पर आकर रुक गईं। ये दोनों समाज के लिए कुछ अलग करना चाहती थीं और देश में एक अलग नाम कमाना चाहती थीं।
इस सोच को साथ लिए उन्होंने साल 2008 में, ओडिशा के सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर साक्षरता लाने के लिए एक गैर सरकारी संगठन, ‘बिहांग’ की शुरुआत की। उनके इस छोटे से प्रयास ने उन्हें ऊर्जा तकनीक स्टार्टअप शुरू करने के लिए प्रेरित किया। इसके जरिए आज ये दोनों दोस्त गांव के किसानों की मदद करने के लिए इनोवेटिव डिवाइस बना रही हैं।
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कैसे हुई नेक काम की शुरुआत?
मिनुश्री ने साल 2000 के अंत में, अपने संगठन के जरिए सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए कंप्यूटर लैब बनाने की शुरुआत की थी। लेकिन बिजली की कटौती के कारण उनका यह प्रयास विफल होता नज़र आ रहा था। बिना बिजली के स्कूल में बच्चे कंप्यूटर लैब का फायदा नहीं उठा पा रहे थे। घर पर उनके पास कंप्यूटर था नहीं और कैफे जाकर कंप्यूटर चलाना उनके लिए संभव नहीं था।
इन परेशानियों को दूर करने के लिए मिनुश्री ने सौर ऊर्जा यानी Solar energy जो सीधे सूर्य से प्राप्त की जाती है, उससे चलने वाले कंप्यूटर लैब शुरू करने के बारे में सोचना शुरू किया। उनके इस काम में एशियन पेंट्स ने सहयोग किया। उन्होंने कहा, “कंपनी ने पहले इस क्षेत्र में निवेश करने की बात की थी। उनकी इस पहल से कंप्यूटर लैब में बिना किसी रुकावट के बिजली आने लगी और खर्च भी कम होने लगा।”
उनकी इस पहल की शुरुआत उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर जिले के दनकौर ब्लॉक के ‘बीडीआरडी सरस्वती विद्यामंदिर इंटर कॉलेज’ से हुई। इसके बाद, इसे चार अन्य स्कूलों में भी शुरू किया गया। मिनुश्री ने बताया कि, ‘पहले एक साल तक तो जरूरी बुनियादी ढांचा बनाने, स्कूल के शिक्षकों को ट्रेंड करने और प्रबंधन संभालने का काम किया गया। जब एक बार सभी स्टाफ को ये समझ में आ गया कि इसे कैसे संभालना है, तो हमने बुनियादी ढांचे की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी।’
उनकी यह पहली पहल काम कर गई। मिनुश्री उस समय दिल्ली में IT Sector में काम कर रहीं थी। साल 2013 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी ताकी वो अपनी NGO पर पूरी तरह से ध्यान दे सके। तब तक मिनुश्री ने अपनी दोस्त अमृता को भी अपने साथ जोड़ लिया था। उन्होंने अमृता को अपने NGO के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया।
लेकिन हर नेक काम की शुरुआत में बाधाएं तो आती ही हैं। उनके इस सफर में भी दिक्कतें आई। अमृता बताती हैं, “पैनल की क्वालिटी अच्छी नहीं थी। जिसकी वजह से छह महीने बाद ही उनके रख-रखाव पर काम करना पड़ा। निचले दर्जे के उपकरण देकर कंपनी ने हमें धोखा दिया था।”
इस समस्या के बाद उन्होंने खुद से उपकरण (Solar Devices) बनाने के बारे में सोचा। उन्हें लगा कि यह समस्या तो अक्सर उनके सामने आती रहेगी। किसी अच्छे विक्रेता की तलाश करने से बेहतर है कि खुद इसका निर्माण किया जाए।
‘थिंक रॉ प्राइवेट लिमिटेड’ की शुरुआत
अमृता पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थीं, तो उन्हें इलेक्ट्रॉनिक्स की अच्छी-खासी जानकारी थी। उसके बाद साल 2015 में अमृता ने भी अपनी नौकरी छोड़ दी और मिनुश्री की तरह अपना पूरा समय इस काम में लगाने लगीं।
नौकरी छोड़ने के अगले ही साल, यानी 2016 में उन्होंने अपने स्टार्टअप, ‘थिंक रॉ प्राइवेट लिमिटेड’ की स्थापना की। स्टार्टअप को सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क्स ऑफ इंडिया एसडीपीआई, भुवनेश्वर के साथ काफी विचार-विमर्श और श्री श्री यूनिवर्सिटी के मार्गदर्शन में शुरू किया गया था। वह कहती हैं, “हम बच्चों के अलावा, गांव के मछुआरे और किसानों की भी मदद करना चाहते थे। हमने कालाहांडी में रहने वाले किसानों को कड़ी मेहनत करते हुए देखा है। बस यहीं से हमें उनके लिए कुछ करने का विचार आया।”
उन्होंने कहा, ”शहर के मुकाबले गांव में काम करने वाले किसानों के लिए समस्याएं ज्यादा हैं। उनके बीच काफी अंतर है। उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। जिंदगी को आसान बनाने वाली तकनीकों के बारे में न तो उन्हें कोई जानकारी है और न ही उसकी समझ। इससे उनकी फसल की गुणवत्ता और पैदावार पर भी काफी असर पड़ रहा था।”
तीन Solar Devices को किया इनोवेट
अमृता ने बताया कि ‘खेती के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण बनाते समय हमें शहरी और ग्रामीण जीवन के अंतर को जानने का मौका मिला। इस अंतर को पाटने और किसानों की मदद करने के लिए इन दोनों के दिमाग में कृषि धनु, धिवरा मित्र और मत्स्य बंधु को बनाने का विचार आया। ‘
उनका सबसे पहला इनोवेशन कृषि धनु है। आपको बता दें कि यह सौर ऊर्जा से चलने वाला एक उर्वरक और कीटनाशक उपकरण है। इसने महिलाओं के कामों को भी आसान बना दिया। इसके बारे में बात करते हुए अमृता ने कहा कि, “महिलाओं के सिर पर टोकरियों में भरा उर्वरक और हाथों से खेतों में उसे डालती महिलाएं। इन इलाकों में यह दृश्य काफी आम है। उर्वरक महिलाओं के हाथों को खराब कर देता है। उन्हें एलर्जी से लेकर कई अन्य तरीके की त्वचा की बीमारियों से जूझना पड़ रहा था। इस तरह से खेतों में खाद डालने का यह तरीका सही भी नहीं है। इससे फसल में कहीं खाद ज्यादा गिरती, तो कहीं कम।”
क्या है Solar Device धिवरा मित्र?
इन सभी समस्याओं से एक साथ निपटने के लिए उनके स्टार्टअप ने एक इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) डिवाइस बनाया। इस डिवाइस में Solar energy से चलने वाली बैटरी लगी हुई है और यह खेतों में खाद डालने का काम करता है। वैसे तो हमारे पास इस तरह के उपकरण पहले से मौजूद हैं, लेकिन वे सिर्फ लिक्विड खाद पर काम करते हैं। उनके इस डिवाइस के साथ ठोस उर्वरक पर भी काम किया जा सकता है। उन्होंने बताया, “इसे गर्भवती महिलाएं भी चला सकती है। इससे कोई खतरा नहीं है।”
उन्होंने हर दिक्कत का एक आसान सा हल निकाल दिया। उनके के दूसरे इनोवेशन धिवरा मित्र डिवाइस (Solar Devices) को सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वॉटर एक्वाकल्चर (CIFA) के सहयोग से बनाया गया है। मिनुश्री ने कहा, “मछली पालन से जुड़े लोगों के सामने ज्यादा खर्च की समस्या के साथ-साथ और भी बहुत सारी चुनौतियां रहती हैं। बिजली की कमी के चलते पानी में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों को चलाने के लिए डीजल का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे उनकी लागत तो बढ़ती ही है साथ ही अगर उपकरण, पानी के सही पीएच स्तर को नहीं बनाए रखते तो मछलियों के मरने या फिर बीमार होने का खतरा भी बढ़ जाता है।”
कैसे करता है काम?
यह एक फ्लोटिंग डिवाइस है, जो पानी के PH Level को मापता है और जरूरत पड़ने पर एरिएशन प्रोसेसर को गति देता है। इस काम के लिए इसमें सेंसर लगाया गया है। उन्होंने बताया, “यह फ्लोटिंग डिवाइस 1.5 kW क्षमता वाले सोलर पैनल से चलती है। यह पानी में चारों ओर घूमती है। इसे मछलियों के लिए सबसे उपयुक्त मापदंडों को बनाए रखने के लिए प्रोग्राम किया गया है।”
उनका तीसरा इनोवेशन मत्स्य बंधु, एक बीज और मछली फ़ीड उपकरण है। यह भी Solar Energy से ही चलता है। आपको बता दें कि पहले मछली को फ़ीड करने के लिए बीज या चारे से भरी बोरी को बांस की सहायता से पानी में लटकाया जाता है। बोरी में नीचे की तरफ कुछ छेद बना दिए जाते हैं ताकि बीज या चारा पानी में धीरे-धीरे जाता रहे।
ऐसा करने से पानी में कई बार बहुत ज्यादा चारा चला जाता है और यह पानी को दूषित कर देता है। इससे कई बार फायदे की बजाय नुकसान हो जाता है। लेकिन मिनुश्री के इस इनोवेशन ने इस समस्या को भी खत्म कर दिया। उनके इस उपकरण में सेंसर लगे हैं। इसमें 30 किलो तक चारा रखा जा सकता है, जो पानी में तैरते हुए समान रूप से पानी में गिरता है।
जानें इसके फायदों के बारे में
यह डिवाइस पानी के पीएच स्तर की निगरानी भी करता है और निर्धारित मात्रा के अनुसार ही चारा पानी में छोड़ता है। इससे पानी का पीएच स्तर सामान्य बना रहता है।
इसे चलाने के लिए किसी मजदूर की जरूरत नहीं होती। साथ ही इसके इस्तेमाल से नुकसान कम होगा और पैदावार भी 30 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी। यह दोनों महिलाएं पूरे देश के लिए एक अलग मिसाल हैं।
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