सुभाष चंद्र बोस पढ़ने में खासे मेधावी थे। मैट्रिक की परीक्षा में टॉप करके उन्होंने कोलकाता के प्रेसीडेंट कॉलेज में एडमिशन लिया। लेकिन यहां ऐसी घटना हुई, जिसके बाद सुभाष को लगा कि अंग्रेजों को भारत से निकाल बाहर करना चाहिए। वह कॉलेज की लाइब्रेरी में थे, तभी पता चला कि एक अंग्रेज प्रोफेसर ने उनके कुछ साथियों से दुर्व्यवहार किया है। सुभाष तुरंत प्रिंसिपल के पास पहुंचे और उन्हें इस बात के बारे में बताया। अंग्रेज प्रोफेसर का रवैया बहुत खराब था, इसलिए सुभाष चाहते थे कि वो प्रोफेसर माफी मांगें। प्रिंसिपल ने इस बात से खारिज कर दिया।
इसके विरोध में अगले दिन से छात्र हड़ताल पर चले गए। पूरे शहर में जब खबर फैली तो हड़ताल को समर्थन मिलने लगा। आखिरकार प्रोफेसर को झुकना पड़ा। दोनों पक्षों के बीच एक सम्मानजनक समझौता हो गया।
कुछ ही दिनों बाद जब अंग्रेज प्रोफेसर ने फिर यही हरकत की तो छात्रों ने कानून को हाथ में लेते हुए बल प्रयोग किया। एक जांच समिति बनी, जिसमें सुभाष ने तर्कों के साथ छात्रों का पक्ष रखा। जिस पर कॉलेज के प्रिंसिपल ने उन्हें कुछ छात्रों के साथ काली सूची में डाल दिया। इसके कारण उन्हें कॉलेज से ही नहीं बल्कि यूनिवर्सिटी से भी निकाल दिया गया।इस घटना से सुभाष को अहसास हुआ कि अंग्रेज भारतीयों के साथ कितना खराब व्यवहार कर रहे हैं। उसके बाद से ही सुभाष क्रांतिकारी बनने के रास्ते पर चल पड़े।
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