#इति_श्री_इतिहास”
आधुनिक राजनीति का ढांचा भले ही नफरत से भरा हो, लेकिन इस देश ने वो दौर भी देखा है जब राजनीति धंधा नहीं, सेवा हुआ करती थी. नेता सरकार का हो या विपक्ष का, सबका सपना भारत की बेहतरी और विकास था. आपको भरोसा नहीं हो रहा तो किताबें उठाईये और अटल जी को पढ़िये, हां, ज्यादा पढ़ने के कुछ साइड इफैक्टस भी हैं, जैसे- जितना पढ़ेगें उतना ही वर्तमान राजनीति से नफरत हो जायेगी.
आपको लगेगा कि कैसे एक विपक्ष का सबसे बड़ा नेता सत्ताधारी पार्टी के नेताओं की यूं तारीफ कर रहा है. वो भी नेहरू जैसे की? जिसको Whtsapp University गद्दार, अय्याश, भ्रष्ट और या यूं कहिये कि आज के भारत की हर समस्या का जनक साबित कर चुकी है.
खैर ऐसा ही एक किस्सा आपके लिये हाजिर है, नेहरू जी की मौत के बाद संसद में अटल जी के दिये भाषण से-
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इस वाकये को एबीपी न्यूज के हुनरमंद संवाददाता श्री अभिनव पांडे जी ने ट्विटर पर लिखा है.
तो पढ़ते हैं –
”एक सपना अधूरा रह गया,एक गीत मौन हो गया और एक लौ बुझ गई। दुनिया को भूख और भय से मुक्त करने का सपना,गुलाब की खुशबू,गीता के ज्ञान से भरा गीत और रास्ता दिखाने वाली लौ। कुछ भी नहीं रहा” पं.नेहरू को श्रद्धाजंलि देते हुए ये वाजपेयी जी के शब्द थे। आगे कहते हैं…
”यह एक परिवार,समाज या पार्टी का नुकसान भर नहीं है। भारत माता शोक में है क्योंकि उसका सबसे प्रिय राजकुमार सो गया। मानवता शोक में है क्योंकि उसे पूजने वाला चला गया। दुनिया के मंच का मुख्य कलाकार अपना आखिरी एक्ट पूरा करके चला गया।उनकी जगह कोई नहीं ले सकता. मई 1964 में जब वाजपेयी संसद ये भाषण दे रहे थे हर सांसद की आंखें नम थीं। वो यहीं नहीं रुके. लीडर चला गया है लेकिन उसे मानने वाले अभी हैं, सूर्यास्त हो गया है,लेकिन तारों की छाया में हम रास्ता ढूंढ लेंगे। ये इम्तहान की घड़ी है, लेकिन उनको असली श्रद्धांजलि भारत को मजबूत बनाकर दी जा सकती है”…
भरे गले इतना बोल वाजपेयी भावुक हो गए। क्योंकि वाजपेयी जानते थे कि लोकतंत्र का विशाल वटवृक्ष गिर भले गया,मगर वो अपनी मजबूत जड़े हमेशा के लिए छोड़ गया। वो पं. नेहरू थे जिनके मुरीद विरोधी भी थे।वो देश के नहीं पूरी दुनिया के प्रिय थे। नेहरू जैसा ना कोई था, ना कोई हो सकता।
सोर्स- ‘हार नहीं मानूंगा’, विजय त्रिवेदी