1958 राष्ट्रमंडल खेलों के चैंपियन और 1960 के रोम ओलंपियन मिल्खा सिंह को 20 मई को वायरस का संक्रमण हुआ था। हालाँकि कोरोना को तो मिल्खा ने मात दे दी थी लेकिन उसके बाद रिकवरी के दौरान मिल्खा अधिक उम्र के कारण इसकी जटिलताओं से हार गये। मिल्खा को ट्रैक एंड फील्ड का भारत का महानतम खिलाड़ी माना जाता है। आज हम दुनिया का मूड की तरफ से मिल्खा सिंह को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में बताने जा रहे है। सिंह, भारत पाकिस्तान के बटवारे से पूर्व गोबिंदपुरा में पैदा हुए थे जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। १९४८ में भारत पाक बटवारे के बाद मिल्खा अपनी बहन के साथ हिंदुस्तान आ गए थे। भारत आकर मिल्खा भारत की फ़ौज का हिस्सा बने और फिर यही से शुरू हुआ उनके फ्लाइंग सिख बनने का सिलसिला। भरपेट खाने के लालच में स्पोर्ट्स ज्वाइन करने वाले मिल्खा को भी अंदाजा नहीं था की उनमें कितना हुनर है, लेकिन एक बार ट्रैक पकड़ने के बाद मिल्खा को ट्रैक से इतना प्यार हो गया की ट्रैक के ही होकर रह गये।
आत्मकथा में पेश की ईमानदारी की मिशाल
जब भी हम किसी की आत्मकथा पढ़ते हैं या किसी के जीवन पर बनी फिल्म देखते हैं तो उसमें उस व्यक्ति विशेष का इतना गुणगान होता है कि जैसे उसने कभी कोई गलती कि ही ना हो या फिर उस काले अध्याय को इस तरह से चित्रित किया जाता है मानो उससे अनजाने में भूल हो गयी हो। लेकिन मिल्खा के जीवन पर बनी भाग मिल्खा भाग ने ईमानदारी कि नजीर पेश की है।
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बताया कैसे चुके ओलम्पिक मेडल से
रोम ओलम्पिक १९६० के दौरान मिल्खा का नाम दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धावकों में शामिल था इसी वजह से उनको पदक का दावेदार भी माना जा रहा था किन्तु एक गोरी मैम से अफेयर की वजह से ओलम्पिक में अपनी स्पर्धा से पहली रात को मिल्खा भटक गए और उसका नुकसान उन्हें पदक से हाथ धोकर उठाना पड़ा। अपनी इस गलती को मिल्खा ने अपनी फिल्म में पूरी ईमानदारी से माना और बताया की गोरी मैम की बाहो में बितायी उस रात की वजह से उन्हें स्पर्धा से पहले सुस्ती महसूस हुई और वही कारण बना की मिल्खा और भारत को ट्रैक एंड फील्ड में सेकंड के सौवें हिस्से के अंतर से ओलम्पिक पदक से हाथ धोना पड़ा।
अर्जुन अवार्ड ठुकराया
मिल्खा सिंह को २००१ में अर्जुन अवार्ड के लिए चुना गया लेकिन उन्होंने इस पदक को ये कहते हुए लेने से मना कर दिया कि सन्यास लेने के ४० साल बाद इस अवार्ड का उनके लिए कोई मतलब नहीं है माने बहुत देर करती मेहरबान आते आते। हालाँकि मिल्खा को १९५९ में पदम् श्री से नवाजा जा चुका है।
३ ओलम्पिक खेले और राष्ट्रमंडल पदक भी जीता
मिल्खा ने 1958 में तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य और कार्डिफ़ में राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीता और ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय ट्रैक और फील्ड एथलीट थे। डिस्कस थ्रोअर कृष्णा पूनिया से पहले वह 50 से अधिक वर्षों तक राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले एकमात्र खिलाड़ी रहे। सिंह ने स्कॉटिश शहर में दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस को 46.6 सेकेंड के समय से हराया था। मिल्खा ने १९५६ मेलबोर्न, रोम १९६० और टोक्यो १९६४ में भारत का प्रतिनिधित्व किया। किन्तु १९६० रोम में वो पदक के सबसे करीब पहुंचे। उनके बाद पी टी उषा दूसरी धावक बनी जिन्होंने ओलम्पिक में चौथा स्थान प्राप्त किया।
४० साल तक नेशनल रिकॉर्ड रहा नाम
रोम ओलम्पिक में ४। ७३ सेकंड में ४०० मीटर कि दूरी का राष्ट्रीय रिकॉर्ड ३८ साल तक मिल्खा के नाम रहा, इस रिकॉर्ड को सी आर पी ऍफ़ के परमजीत सिंह ने १९९८ एशियाई गेम्स के दौरान ४। ७० सेकंड के समय में ४०० मीटर दौड़ कर तोड़ा, मिल्खा सिंह ने परमजीत को इनाम बतौर १ लाख रुपए का पुरुस्कार अपनी तरफ से दिया।
2019 में, सिंह ने अपना 90 वां जन्मदिन कोरोना को ध्यान में रखते हुए परिवार के सदस्यों के साथ चंडीगढ़ में अपने सेक्टर 8 आवास पर मनाया था। “यह मेरे और पूरे परिवार के लिए एक विशेष दिन है लेकिन हम उत्सव मानाने के लिए इंतजार कर सकते हैं। मैं इस दिन को देखने के लिए यहां हूं, इसका कारण मेरी फिटनेस है और मैं कड़ाई से इसका पालन करता हूं। यह मेरे जैसे एथलीट के लिए प्रार्थना की तरह है और मेरा मानना है कि जब तक कोई व्यक्ति फिट रहता है, वह सक्रिय रहता है। “