सुधा मूर्ति को आज कौन नहीं जानता। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए इन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा था। सुधा मूर्ति इंफोसिस की चैयरपर्सन हैं, इसी के साथ वे एक लेखिका और प्रसिद्ध समाज सेविका भी हैं। उनकी किताबों का 15 भाषाओं में अनुवाद हुआ है। सुधा का सपना है कि हर स्कूल में बच्चों के लिए लाइब्रेरी हो। अपने इस सपने को साकार करने के लिए अपने पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से उन्होंने देश के अलग-अलग स्कूलों में 70,000 लाइब्रेरी बनवाई हैं।
ज इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी लंबा सफर तय किया है। उनके जीवन से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है। जब वो कॉलेज के दिनों में थीं, उस वक्त उनके नोटिस बोर्ड पर जॉब के सिलसिले में नोटिस लगा हुआ था, जो टाटा मोटर्स से आया था। इसमें लिखा गया था कि कंपनी में युवा और मेहनती इंजीनियर्स की जरूरत है।
इस नोटिस के सबसे नीचे की लाइन में लिखा था – ‘महिला उम्मीदवार इस कंपनी में अप्लाई न करें’। यह उनके जीवन का पहला अनुभव था, जब उन्होंने महिलाओं के साथ होने वाली असमानता को देखा और उसके खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया।
इस नोटिस को पढ़ने के बाद उन्होंने एक पोस्ट कार्ड पर टाटा के चैयरपर्सन को लेटर लिखा और उन्हें ये बताया कि टेलको जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में भी लैंगिक असमानता है। 10 दिन से भी कम समय में उन्हें एक टेलीग्राम मिला जिस पर लिखा हुआ था कि टेलको की पुणे कंपनी में उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया गया है। इसके बाद मानों उनकी ज़िंदगी बदल गई। सुधा मूर्ति टेलको शॉप फ्लोर में काम करने वाली पहली महिला बन गई।
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