इंकलाब जिंदाबाद! यह वह नारा है. जो आखिरी बार लाहौर की जेल में गूंजा था। यह गूंज और इससे जुड़े तीन नाम आज भी इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।
नाम था भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु!
भगत सिंह एक ऐसा नाम है, जिसे सुनने के बाद आज भी जेहन में जोश भर जाता है। लेकिन राजगुरु और सुखदेव के जिक्र के बिना शहीद भगत सिंह का जिक्र अधूरा है।
1. 24 अगस्त 1908 को जन्मे राजगुरु का पूरा नाम शिवराम राजगुरु था। मात्र 6 साल की उम्र में इन्होंने अपने पिता को खो दिया था। पिता के निधन के बाद वह वाराणसी आ गए।
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2. जन्म के समय ही एक ज्योतिष ने राजगुरू की भविष्यवाणी करते हुए कहा था कि यह बच्चा आगे जाकर कुछ ऐसा करेगा, जिससे उनका नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा।
3. वाराणसी में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात कई क्रांतिकारियों से हुई। राजगुरू तीर-कमान, निशानेबाजी और कुश्ती में निपुण थे। वह चंद्रशेखर आजाद से काफी प्रभावित थे। 16 वर्ष की आयु में राजगुरू, चंद्रशेखर आजाद की पार्टी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से जुड़ गए।
4. चंद्रशेखर भी राजगुरु से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने ही राजगुरु को निशानेबाजी सिखाई। इस कारण ही उनकी मित्रता भगत सिंह और सुखदेव से हुई। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए आज़ाद ने राजगुरु को उनके सटीक निशाने के लिए चुना था।
5. उनका और उनके साथियों का मुख्य लक्ष्य था ब्रिटिश अधिकारियों के मन में खौफ पैदा करना। साथ ही, वे घूम-घूमकर लोगों को जागरूक करते थे।
6. उन्होंने अपना सारा जीवन देश की आज़ादी में लगा दिया। 23 मार्च 1931 को इंकलाब जिंदाबाद नारे के साथ अंग्रेजों ने उन्हें भगत सिंह और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया।
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