एक विशेष प्रशिक्षण के बाद शुरू किया जानें वाले काम को व्यवसाय (Profession) कहा जाता है। कोई भी छोटा या बड़ा व्यापार एक व्यवसाय होता है। जिसमें प्रक्षिक्षण लिया हुआ व्यक्ति कुछ पैसे लेकर दूसरों को सलाह या सेवा देता है। उसी में एक होता है डॉक्टर (Doctor), जिस तरह सैनिक हमारे देश की रक्षा करते हैं उसी तरह डॉक्टर हमारे स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं । डॉक्टर को हमारे समाज में भगवान का दूसरा अवतार माना जाता है और उनका एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इनके पास हमारी हर समस्या का समाधान होता है। कोरोना महामारी के दौरान जब सबने हार मान ली थी, उस दौरान एक डॉक्टर ही थे जो अपना घर परिवार छोड़कर हमारी सेवा में खड़े थे। एक इंसान के जन्म से लेकर उसकी अंतिम सांस तक, डॉक्टर उसके साथ रहते हैं। जिस दौर में हॉस्पिटल नहीं हुआ करते थे, उस समय भी डॉक्टर हुआ करते थे।
कौन है भारत की पहली महिला डॉक्टर ?
आज दुनियाभर में महिला दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन को महिलाओं के प्रती सम्मान के रूप में मनाया जाता है। आज के इस दौर में महिलाओं ने कई मुकाम हासिल किए हैं। एक छोटी सी दुकान से लेकर, देश के जवानों, खेल, बॉलीवुड हर जगह महिलाओं ने अपना एक अलग मुकाम हासिल किया है। देश ही नहीं विदेशों में भी हमारी भारत की महिलाओं ने अपना नाम किया है। बात डॉक्टर के बारे में की जाए, तो कई महिला डॉक्टर आपको मिल जाएंगे। लेकिन क्या आप जानते हैं हमारे देश की सबसे पहली महिला डॉक्टर कौन थी ?
अब,लगभग हर घर में महिलाओं की पढ़ाया जा रहा और उनपर खास ध्यान दिया जाता है। लेकिन, 18वीं शताब्दी में जिस दौर में भारत में महिलाओं को शिक्षा के लिए रोका जाता था, उस दौर में विदेश जाकर डॉक्टर की डिग्री हासिल कर एक मिसाल कायम करने वाली महिला थी डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी।
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आनंदीबाई जोशी का जन्म 31 मार्च 1865 को पुणे शहर में हुआ था। उनकी शादी 9 साल की उम्र में अपने से करीब 20 साल बड़े व्यक्ति गोपालराव से हुई थी और 14 साल की उम्र में उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया था। लेकिन, बेटे के जन्म के 10 दिन बाद ही उसकी मृत्यु हो गई थी। इस घटना का उन्हें गहरा सदमा पहुंचा था। जिसके बाद पढ़-लिख कर डॉक्टर बनने की चाहत रखी। उनके इस फैसले का का उनके पति गोपालराव ने भी साथ दिया। उस दौरान अपनी पत्नी को डॉक्टर बनाने के फैसले पर उनके परिवार ने उनका बहु विरोध किया। इन आलोचनाओं का उन पर और गोपालराव पर बिल्कुल असर नहीं पड़ा। कहते हैं न की एक मर्द की कामयाबी के पीछे एक औरत का हाथ होता है, लेकिन इस और के पास उसके पति का साथ था। मेडिकल क्षेत्र में शिक्षा पाने के लिए वे अमेरिका गई और 1886 में 19 साल की उम्र में आनंदीबाई ने एमडी की डिग्री हासिल की और पहली भारतीय महिला डॉक्टर बन दुनिया के सामने मिसाल कायम कर दी। 1986 में डॉक्टरी की पढ़ाई कर भारत लौटीं आनंदीबाई को कोल्हापुर की रियासत में अल्बर्ट एडवर्ड अस्पताल में महिला वार्ड के चिकित्सक के प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया था। डिग्री पूरी करने के बाद आनंदीबाई जब भारत लौटी , उस दौरान वे टीबी की बीमारी से जूझ रही थी। उनकी सेहत दिन पर दिन खराब होती गई, जिसके कारण 26 फरवरी 1887 में केवल 22 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। आनंदीबाई अपने सपने को आगे नहीं जी सकीं लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया की महिलाएं देश में कुछ भी कर सकती हैं।