शाहबाद, हरियाणा में कुरुक्षेत्र के पास एक छोटा सा शहर, वहां एक परिवार जिसका मुखिया घोड़ा तांगा चलाकर करीब 80 रूपये रोजाना कमा पाता था, गरीबी ने कभी उसको बड़े सपने नहीं पालने दिया, उसको पता था कि तांगा चलाकर जैसे तैसे तो गुजर बसर हो रही है ऐसे में बड़े सपने पाल कर क्यों ही मन को बेचैनी देनी। लेकिन उस तांगे वाले की एक बच्ची जो कुपोषित थी उसके मन में स्कूल के रास्ते में अपनी और अपनी उम्र से बड़ी लड़कियों को देख कर एक सपना पनपने लगा था, वो सपना था हॉकी खेलने का सपना। अब तक शायद आपको समझ आ गया होगा कि हम किसकी बात कर रहे हैं? नहीं समझे ? चलो बता देते हैं ये फ़िल्मी सी लगने वाली कहानी असल जिंदगी में 4 दिसंबर 1994 को जन्मी भारतीय हॉकी की कप्तान रानी रामपाल की है।
रानी कुपोषित थी तो शरीर कमजोर था लेकिन उनका सपना इतना मजबूत था कि उसके आगे सारी अड़चने छोटी पड़ गयीं। दरअसल रानी जहाँ पढ़ती थीं उस स्कूल के रास्ते में एक हॉकी अकादमी थी और उस अकादमी में कोच थे बलदेव सिंह। रानी ने वहाँ अपने जैसे और खिलाडियों को खेलते देखा तो कोच से आग्रह किया कि उन्हें भी खेलने का मौका दिया जाये। कोच ने उनके कमजोर शरीर का हवाला देते हुए मना कर दिया लेकिन रानी मन में ठान चुकी थी कि उन्हें हॉकी ही खेलनी है। बार बार विनती करने पर कोच उन्हें सिखाने को राजी हो गए लेकिन समस्या आयी हॉकी स्टिक की, पिता रामपाल सिंह आर्थिक रूप से इतने सक्षम नहीं थे कि रानी को हॉकी स्टिक दिला सकें। लेकिन कहते है न “जहाँ चाह वहाँ राह”
एक दिन रानी जो रोज अन्य साथियों को खेलते देखने के लिए अकादमी जाती थीं को एक टूटी स्टिक मैदान में मिल गयी, बस फिर क्या था टूटी स्टिक और फौलादी इरादे लेकर पहुंच गयीं कोच बलदेव सिंह के पास। उन्होंने रानी को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया, घरवालों ने स्कर्ट पहनने को लेकर थोड़ा विरोध किया लेकिन बाद में बेटी की जिद के आगे मान भी गए और देखते ही देखते रानी ने अपने नाम बनाना शरू कर दिया। उन्होंने प्रतिभा और कौशल के दम पर बहुत जल्द कोच और घरवालों को ये भरोसा दिला दिया कि ये लड़की बहुत आगे जाएगी।
मात्र 6 साल की उम्र में हॉकी पकड़ने वाली रानी ने मात्र 15 साल की उम्र में भारत के लिए पदार्पण किया और वर्ल्ड कप खेलने वाली भारत की सबसे कम उम्र की खिलाडी बन गयीं। कुल 212 मैचों में 134 गोल कर चुकी इस खिलाड़ी ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। फॉरवर्ड पोजीशन पर खेलने वाली रानी मिडफ़ील्ड भी उतनी ही महारत से संभालती हैं और इतना ही नहीं कभी कुपोषित रही ये शेरनी आज दुनिया की सबसे फिट खिलाडियों में शुमार है और जैसे जैसे इनका अनुभव बढ़ा है वैसे वैसे इनकी कला भी निखरी है। रियो में अपना पहला ओलिंपिक खेलने वाली रानी को अर्जुन अवार्ड, पदम् श्री और खेल रत्न जैसे पुरुष्कारों से नवाजा जा चुका है। तो वहीँ टोक्यो ओलम्पिक में भारत की कप्तान भी बनायी गयीं।
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तो दोस्तों कहते है न जिनको उड़ान भरनी हो न, वो बारिश कि शिकायत नहीं किया करते, और रानी ने इस बात को हर कदम साबित किया है कि खुली आँखों से देखा जाने वाला हर सपना पूरा हो सकता है।