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रविवार, दिसम्बर 22, 2024
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भारतीय हॉकी के “नवीन” उत्थान की गाथा

कहते हैं सफलता के सौ बाप होते हैं असफलता का कोई नहीं होता, जी हाँ, कम से कम भारत की हॉकी का इतिहास तो इस बात को सौ फ़ीसदी साबित करता है। टोक्यो ओलम्पिक में पुरुष टीम ने 49 वर्ष बाद तो महिला टीम ने पहली बार सेमीफाइनल में जगह बनायी है । आज पूरा भारत जश्न में डूबा है, चक दे इंडिया पिछले 24 घंटे में यूट्यूब पर सबसे ज्यादा सर्च किया जाने वाला गाना बन गया है। लेकिन आप खुद से पूछिए क्या ओलम्पिक शुरू होने से पहले आप जानते थे की भारत की हॉकी टीम का कप्तान कौन है? क्या आपने रानी रामपाल का नाम सुना था? अगर आप बहुत जबरा खेल प्रेमी हैं तो शायद सुना होगा वर्ना तो नहीं।

PC – hindustan times

पिछले दशक में विवादों ने घेरे रखा।

भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी पिछले 40 साल से लगातार शीर्ष में आने को लेकर संघर्ष कर रहा था लेकिन बात बनी नहीं, कभी एसोसिएशन पर धाक ज़माने को लेकर झगड़ा, तो कभी देशी विदेशी कोच का पंगा, यहाँ तक कि एक समय पर दो संस्थाएं भारतीय हॉकी पर अपना कब्ज़ा ज़माने को लेकर कोर्ट तक जा पहुंचे।

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निराशाजनक रहा इस सदी में प्रदर्शन।

नयी सदी को चले 21 वर्ष हो चुके हैं  लेकिन एक जूनियर विश्व कप और 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल में पहुंचने के अलावा भारत को कुछ बड़ी सफलता नहीं मिली, ऐसा नहीं हैं कि इस दौरान भारत को बढ़िया ख़िलाड़ी नहीं मिले, धनराज पिल्लई, दिलीप टर्की, दीपक ठाकुर, सरदार सिंह जैसे धुरंधर खिलाडियों ने इस दौरान भारत का प्रतिनिधित्व किया लेकिन अच्छा सहयोग न मिलने के कारण इनकी सफलता व्यक्तिगत स्तर तक ही सीमित रह गयी।

रियो ओलम्पिक 2016 के लिए पुरुष टीम नहीं कर पायी थी क्वालीफाई।

भारत हॉकी टीम का प्रदर्शन 2012 – 2017 तक अपने सबसे निचले स्तर पर रहा, जिसमे रियो ओलम्पिक 2016 के लिए क्वालीफाई न कर पाना हॉकी इतिहास का सबसे शर्मनाक पल रहा, खराब प्रदर्शन की वजह अच्छे भत्ते और सुविधाओं का अभाव था, लगातार गिरते प्रदर्शन की वजह से सरकारों और कॉर्पोरेट घरानों ने हॉकी से दूरी बना ली। एसोसिएशन की रार ने जलती आग में घी का काम किया और भारतीय हॉकी को गर्त में पंहुचा था।

नवीन के साथ ने लिखी नवीन भविष्य की गाथा।

हुनर की कमी तो भारत में कभी नहीं थी लेकिन कोई चाहिए था जो मूल भूत सुविधाएं दे सके और युवाओं को हॉकी अपनाने के लिए प्रेरित कर सके।  ऐसे में 2018 में हॉकी का हाथ थामा ओडिशा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक ने। अपने कार्य के दम पर पिछले 2 दशक से अधिक समय से ओडिशा की सत्ता पर काबिज़ नवीन पटनायक ने ओडिशा सरकार को हॉकी का मुख्य प्रायोजक बनाकर आर्थिक सुरक्षा दी । ओलम्पिक की तैयारी के मद्देनजर इन्होने कई मैच भी भुवनेश्वर में आयोजित कराये।  इसके साथ ही कॉर्पोरेट संरक्षण में हॉकी इंडिया लीग शुरू हुई, जहाँ से शानदार दिलप्रीत ओर हार्दिक सिंह जैसे युवा ख़िलाड़ी चयनकर्ताओं की नजरों में आये।

ऑस्ट्रेलियाई कोच ने दी टीम को धार।

ग्रैहम रीड के रूप में भारत को वो कोच मिला जिसने खिलाडियों की प्रतिभा को पहचाना, निखारा ओर उम्मीदों पे खरा उतरना सिखाया।  दबाब के क्षणों में बिखरने की कमजोरी को ही भारत की मजबूती बना दिया। कप्तान मनप्रीत सिंह एवं रूपिंदर पल सिंह जैसे शानदार ख़िलाड़ी और पी आर श्रीजेश के रूप में भारत को एक ऐसा गोल कीपर मिला जो दुनिया के सबसे अच्छे गोल कीपरों में शुमार हैं ओर उनके शानदार डिफेंस के दम पर ही भारत ने सेमी फाइनल में जगह बनायी है।

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