भारत सरकार के द्वरा चालये गये वोकल फ़ॉर लोकल या फिर मेक इन इंडिया के तर्ज पर आज भारतीय सेना को उसका पहला अपने देश मे निर्मित मल्टी हैंड ग्रेनेड मिल गया है आइये जानते है क्या है ये मल्टी हैंड ग्रेनेड।
भारतीय सेना में आधुनिक हथियारों की लंबे समय से जरूरत बनी हुई है. इन हथियारों को प्राप्त करने के भारत को विदेशो पे निर्भर होना पड़ता है और जिस मैं काफी लंबा वक्त एवं वो हथियार काफी मंहगे होते थे, साथ ही उन्हें हासिल करने की प्रक्रिया बहुत जटिल और लंबी भी होती है. इसीलिए आत्मनिर्भर भारत एवं वोकल फ़ॉर लोकल अभियान में ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं जिससे आधुनिक हथियार और उपकरण भारत में ही निर्मित हो सकें. इसी दिशा में भारत के रक्षा मंत्रालय ने ऐलान किया है कि उसने भारतीय सेना के लिए स्वदेश में विकसित किया हुआ मल्टीमोड हैंड ग्रेनेड (MMHG) की सप्लाई के लिए करार किया है.
कितनी आपूर्ति और कीमत
रक्षा मंत्रालय का यह करार नागपुर की एक निजी कंपनी से इस आधुनिक ग्रेनेड की 10 लाख यूनिट की आपूर्ति के लिए किया गया है जिनकी कीमत भारतीय सेना के लिए 400 करोड़ पड़ेगी. ये ग्रेनेड भारतीय सेना के उन पुराने 36M वाले मिल्स बम ग्रेनेड की जगह लेंगे जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से प्रोयग में लाये जाते है।
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अब तक 20 सदी की शुरुआत वाले ग्रेनेड
इन की खासियतों की वजह से यह कदम भारतीय सेना के लिए एक बड़ा सुधार माना जा रहा है. अभी तक उपयोग में लाए जा रहे नंबर 36M ग्रेनेड पुराने हैं जो 20वीं सदी की शुरुआत में दुनिया भर में उपयोग में लाए जाने लगे थे. यह हाथ में रखा जा सकने वाला छोटा बम होता है जिसका आवरण इस तरह से बना होता है कि फूटने पर इसके टुकड़े बहुत नुकसान पहुंचाते हैं.
कैसे होते हैं ये परंपरागत ग्रेनेड
इस ग्रेनेड में भी कई तरह के सुधार हुए लेकिन इसका अन्ननास जैसा बाहरी आवरण उसी तरह का रहा जिससे इसे पकड़ना आसान बना रहे. भारतीय सेना अंग्रेजों के बनाए इस ग्रेनेड का 36एम संस्करण उपयोग में लाती रही है. मिल्स बम नाम ने प्रसिद्ध ये ग्रेनेट राइफल से भी दागे जा सकते हैं. इसका निर्माण भारतीय ने के ऑर्डिनेन्स फैक्ट्रियों में बनाया जाता है.
क्या सुधार किया गया है एमएमएचजी में
इस परंपरागत ग्रेनेड के उपयोग में विश्वस्नीयता को लेकर कई तरह के समस्याएं हैं. इसके फैलने का तरीका बहुत असामान्य होता है जिससे यह फेंकने वाले तक के लिए असुरक्षित हो जाता है. लेकिन मल्टीमोड ग्रेनेड को इन खामियों को दूर करता है. इसके बनाने वाली डीआरडीओ की टर्मिनेल बैलेस्टिक रिसर्ज लैबोरेटरी के आधिकारिक पेज के अनुसार इसमें ‘प्रीफर्म्ड सिलेंड्रिकल माइल्ड स्टील प्री फ्रेग्मेंट्स’ का उपयोग किया गया है जो यह सुनिश्चित करता है कि इसके फूटने पर बिखराव समान रूप से हो.
दो अलग-अलग मोड
एमएमएचजी दो तरह की संरचनाओं में आता है. इस वजह से यह दो अलग अलग मोड वाला हैंड ग्रेनेड बन गया है. एक मोड डिफेंसिव मोड है तो दूसरा ऑफेंसिव मोड. अभी तक जो ग्रेनेड भारतीय सेना में उपयोग में लाए जा रहे थे वे डिफेंसिव मोड के ग्रेनेड थे. ये तभी कारगर थे जब दुश्मन खुले में हो और फेंकने वाले सैनिक को कोई सुरक्षा या आड़ मिल हो.
ऑफेंसिव मोड नई खासियत
वहीं ऑफेंसिव ग्रेनेड फटता नहीं है. इसमें दुश्मन को नुकसान विस्फोट से होता है जबकि इसे फेंकने वाला सैनिक सुरक्षित होता है. एमएमएचजी के डिफेंसिव मोड में भी एक फ्रैग्मेंटिंग स्लीव होती है उसकी मारक दूरी 8 मीटर के दायरे की होती है. वहीं ऑफेंसिव मोड में ग्रेनेड में स्लीव नहीं हैं और इसे मुख्यतया विस्फोट कर दुश्मन को चौंकाने और डराने के लिए उपयोग में लाया जाता है. इस मोड में मारक प्रभाव 5 मीटर का दायरा होता है.
इस ग्रेनेड पर काम पिछले 15 साल से चल रहा है. डीआरडीओ ने इकोनॉमिक एक्सप्लोजिव लिमिटेड कंपनी को चार साल पहले तकनीक प्रदान कर दी थी जिसे अब 10 लाख ग्रेनेड की आपूर्ति करनी है. इस ग्रेनेड ने परीक्षण में 99 प्रतिशत सुरक्षा और विश्वसनीयता हासिल की है. यह आत्मनिर्भर भारत की एक दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।