एक महिला के लिए गर्भवती होना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। अगर कोई महिला गर्भवती होने से वंच्छित रह जाती है तो लोग तरह-तरह की बातें बनाते है। हालांकि ऐसा नहीं होना चाहिए। क्योंकि औरत के लिए प्रेगनेंट होना एक सपने से कम नहीं होता, लोगों का समझना चाहिए कि बच्चा भगवान की देन होता है। इस मामले में औरत की कोई गलती नहीं है। यही कारण है कि हमारे समाज में मां को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। मां शब्द के लिए कवि आर एन टैगोर ने भी कहा है कि पृथ्वी पर जीवित देवता हैं।
महिला के लिए महत्वपूर्ण दिन: पीड़ादायक क्यों होती है गर्भावस्था ?
गर्भावस्था की बात की जाए तो एक महिला के लिए ये परीक्षा से कम नहीं है। एक शरीर से दूसरे शरीर का निकलना बहुत पीड़ादायक होता है। इसके अलावा जो सबसे ज्यादा प्रभावित होता है वो है महिला का शरीर, जो कमजोर, भारी और कम ऊर्जावान हो जाता है। हालांकि, आधुनिक महिला को इन कारणों से मां बनने में शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वैज्ञानिकों की माने तो सही देखभाल करके अपनी बॉडी को पहले जैसा बरकरार रख सकती हैं।
दरअसल, गर्भावस्था की सामान्य अवधि नौ महीने होती है, हालांकि विशेष मामलों में यह बढ़ जाती है या कम हो जाती है। लेकिन ये कहना सही होगा कि उचित देखभाल और ध्यान के साथ इस परीक्षा आप पास हो सकते है।
महिला जिसे पहले नियमित मासिक धर्म हो चुका है, उसकी तारीख के बाद तीन दिनों या उससे अधिक समय तक मासिक धर्म नहीं आता, ये माना जा सकता है कि वे गर्भवती हो गई है। अगर मासिक धर्म के बिना एक और महीना बीत जाता है, तो आप समझ लेना की गर्भावस्था का समय आ गया है। आमतौर पर गर्भधारण के बाद मासिक धर्म से खून आना बंद हो जाता है।
बता दें ये ध्यान में रखना चाहिए कि कुछ असामान्य स्थितियों में, मासिक धर्म तब भी विफल हो सकता है जब गर्भधारण न हुआ हो। ऐसी कुछ स्थितियां हैं जो हार्मोनल चेंज की वजह से होता है, जिनमें कुछ बीमारियां शामिल हैं। इसलिए, मासिक धर्म का छूटना जरूरी नहीं कि आप प्रेगनेंट हो गईं हैं। सामान्य परिस्थितियों में मासिक धर्म का छूटना गर्भावस्था का पहला और महत्वपूर्ण संकेत माना जाता है। यदि मासिक धर्म नियमित होने वाली महिला को दो महीने की अवधि के लिए मासिक धर्म नहीं होता है, तो यह माना जा सकता है कि वो गर्भवती है।
गर्भशय करने पर क्या-क्या दिक्कत आ सकती है?
गर्भाशय का विकास पहले तीन महीनों के दौरान होता है, जिससे पेशाब ज्यादा होने लगती है। लेकिन बाद में परेशानी कम हो जाती है, हालांकि जब बच्चा पेट के निचले हिस्से तक आता है। तब ये गर्भावस्था का आखिरी चरण होता है।
गर्भावस्था की प्रगति के साथ हृदय पर भार बढ़ सकता है। हृदय पर भार का सीधा संबंध शरीर के भार से होता है। गर्भवती महिला का वजन अनावश्यक रूप से बढ़ जाता है, तो हृदय पर भार भी उतना ही अधिक होता है। कुछ महिलाओं को सीने में जलन का अनुभव होता है। ये पेट में निचले एसोफेजियल स्फिंक्टर टोन, हाइपरएसिडिटी और गैस में कमी की वजह से होता है।