कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री जिनका कल दिनांक 21-08-2021 को लखनऊ के पीजीआई में देहांत हो गया।
कल्याण सिंह किसी नाम के मोहताज नही। कल्याण सिंह एक ही ऐसा नेता थे जिनको राम मंदिर केस में जेल जाना पड़ा था। एक ऐसा नेता जिसकी सुपारी उस समय के कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ल ने 1 करोड़ ली थी और बस वो उसकी आखिरी सुपारी थी। एक ऐसा नेता जिसे सारे माफिया डरते थे। जिसको सुने के लिए उतनी ही भीड़ आती थी जितनी भीड़ अटल बिहारी जी को सुने के लिए आती थी।
अलीगढ़ के इस गांव में कल्याण सिंह का हुआ था जन्म
कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के अतरौली में हुआ था. अंग्रेजों के शासनकाल में यह इलाका तब संयुक्त प्रांत कहलाता था. कल्याण सिंह से अपनी प्रारंभिक शिक्षा अलीगढ़ से ही पूरी की. उन्होंने स्थानीय महाविद्यालय से बीए की डिग्री हासिल की और सार्वजनिक जीवन में उतर गए. वह ताउम्र शाकाहारी रहे. कल्याण सिंह को युवावस्था में कबड्डी खेलने बेहद पसंद था.
1967 मे सियासी पारी की हुई थी शुरुआत
कल्याण सिंह को राजनीति कोई विरासत के रूप में नही मिली थी। राजनीति पारी की शुरुआत वर्ष 1967 में शुरू हुई थी, जब वह पहली बार अतरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य के लिए चुने गए और वर्ष 1980 तक विधायक रहे. जून 1991 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा 425 में से 221 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई. शानदार जीत के बाद भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया.
जटिल फैसलो के लिए जाने जाते थे
कल्याण सिंह को उनके पहले कार्यकाल में बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए याद किया जाता है.लेकिन इसके साथ ही उनके इस कार्यकाल में जो सबसे महत्पूर्ण निर्णय था वो ‘नकल अध्यादेश’. जिसे कल्याण सिंह सरकार का एक बोल्ड फैसला माना गया क्यों कि कल्याण सिंह शिक्षा को लेकर उतने ही कठोर थे शिक्षा के साथ खिलवाड़ नही पसंद था. तब राजनाथ सिंह यूपी के शिक्षा मंत्री थे. बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेजने के इस कानून ने कल्याण सिंह की बोल्ड एडमिनिस्ट्रेटर की छवि तो बनाई, लेकिन सियासी नुकसान भी दिया. उस वक्त विपक्ष के नेताओं ने लखनऊ की सड़कों पर पोस्टर लहराए थे, जिसमें बच्चे हाथ में हथकड़ियां पहने खड़े थे. कल्याण सरकार को इसने काफी नुकसान पहुंचाया.
अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीति का अच्छा नेता माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि अटल के मित्र हर दल में थे, लेकिन दुश्मन कोई नहीं. लेकिन कल्याण सिंह के राजनीतिक जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से अन बन होगयी और नाराज होकर भाजपा से नाता तोड़ लिया था. कल्याण ने राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बना ली थी. हालांकि बाद में अटल बिहारी वाजपेयी के अनुरोध पर ही वे भाजपा में वापस आ गए थे.
लेकिन साल 2009 में फिर भाजपा से अलग होकर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे. साल 2013 में फिर भाजपा में शामिल हो गए. साल 2014 में मोदी सरकार आने के बाद कल्याण सिंह को राज्स्थान और हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया. कल्याण सिंह के बारे में जॉर्ज फर्ना फर्नांडिस ने एक बार कहा था, ”राजनीति में कामयाबी के लिए धैर्य की ज़रूरत होती है. अगर कल्याण सिंह ने धैर्य दिखाया होता तो वही अटल के बाद भाजपा के कप्तान होते.”
वहीं कल्याण सिंह ने कहा, ”मेरे राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी भूल थी कि मैंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की बात स्वीकार कर ली. अगर मैं इसके लिए तैयार नहीं हुआ होता, तो अटल जी मुझे हटा नहीं सकते थे.” कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह भी राजनीति में सक्रिय हैं और 2014 में एटा से सांसद बने थे. फिर 2019 में दोबारा लोकसभा के लिए चुने गए. वहीं कल्याण सिंह के पौत्र संदीप कुमार सिंह योगी आदित्यनाथ की सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री हैं.