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गुरूवार, नवम्बर 21, 2024
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आजादी! ……. ढूंढ रहा है मेरा भारत।

आजादी, इस शब्द को आँखें बंद करके तीन बार उच्चारित कीजिए, आपको लगेगा की आप जीवन के तमाम बंधनों से मुक्ति पा रहे है लेकिन ये सिर्फ सपना है वास्तविकता इसके बहुत परे है और ये एहसास आपको आँखें खुलने के तुरंत बाद हो जायेगा । कई सौ वर्षों तक और कई सभ्यताओं के गुलाम रहने के बाद आज देश को सम्पूर्ण आजाद हुए ७४ वर्ष हो चुके हैं, लेकिन आज भी मानसिक और सामाजिक ग़ुलामी हमें जकड़े हुए है। कहीं हम धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं तो कहीं हम अपनी जाति को सर्वश्रेष्ठ साबित करने में लगे हैं। जिन नेताओं को हम चुनकर भेजते हैं वही नेता चुनाव के बाद हमारे लिए वी आई पी हो जाते हैं।

भारत के संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी पर बड़ा जोर दिया गया है लेकिन इस अभिव्यक्ति की आजादी की खोज ही असल में सबसे बड़ा छलावा है, आप कहेंगे कैसे?

चलिए कुछ सवालों के जरिये इसका परिक्षण करते है, पहले निजी जिंदगी से शुरू करते हैं –

क्या आप जीवन में वही कर रहे हैं जो आप करने चाहते थे ?
क्या आपका जीवन साथी वही है जिसके साथ आपने प्रेम का ताना बाना बुन के जीवन साथ बिताने की कसमें खायी थी?
क्या आप वही पहन पाते है जो आप पहनने की इच्छा रखते है ?
क्या आप वो सब कर पा रहे है जो आप करना चाहते हैं?
क्या समाज के कथित चार लोगो की वजह से आपके किसी सपने का दम घोट दिया गया ?

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अगर ऊपर पूछा कोई भी सवाल आपकी रूह पर वार करके गया है तो सच मानिये आप आजाद नहीं हैं, आपके मौलिक अधिकार पर चोट हुई है आपसे अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार छीनकर सामाजिकता, अधिकारिता, मानसिकता के नाम पर अन्य चीजें थोप दी गयी। अब इस सब के बीच सोचिये आपकी आजादी कहाँ है ? आपको कितनी आजादी मिली ?

अब बात आपकी प्रोफेशनल जिंदगी की –

क्या आपके अंदर कोई तेंदुलकर, अमिताभ, रफ़ी था जिसको आपने इसलिए मरने दिया कि पापा नहीं मानेंगे?
क्या ऑफिस में आपको आपके काम का क्रेडिट बिना बॉस की चापलूसी किये मिलता है?
क्या आप आज वही कर रहे हैं जो आप बचपन से बनना चाहते थे?

यकीन मानिये अगर आपके अंदर का दर्द बाहर आ झलका है तो यहाँ भी आप अपने लिए नहीं लड़ पाए यहाँ भी आपकी आजादी को हना गया है यहाँ भी आपके सपने ग़ुलामी की जंजीरों से बांध दिए गए।

आजाद हिंदुस्तान आज ७४ वर्ष का हो गया है, देशभक्ति का गीत सुनते, गुनगुनाते या डिजिटल युग में सोशल मीडिया पर स्टेटस लगाते सोचिये कितना आजाद हैं आप? देश की आजादी का जश्न मनाते लड्डू खाइये, समोसा खाइये और खाते खाते झांकिए अपने अंदर के उस गुलाम के अंदर जो समाज, सभ्यता, संस्कारों के नाम पर जन्म से ठगा जा रहा है।

जाते जाते एक बात और, जब तक जिन्दा हो अपने लिए लड़ सकते हो, अपने सपने और अधिकार को साबित और साकार कर सकते हो, तो उठो लड़ो जीतो और पा लो स्वतंत्रता, वर्ना आजाद देश के गुलाम नागरिक बनकर आपको सुपुर्द ए खाक किया जायेगा और रह जायेंगे तो अधूरे सपने

जय हिन्द

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