किसान आंदोलन: अब तक की घटनाओं पर एक खास नज़र-
-26 नवंबर 2020 से हजारों किसान दिल्ली के कई सीमावर्ती बार्डर (सिंघु, टीकरी, शाहजहांपुर और गाजीपुर) पर डेरा डाले हुए हैं।
-11 जनवरी को, सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक नए कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगाई और किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए 4 सदस्यीय समिति बनाई।
कौन-कौन है समिति में शामिल?
समिति में अनिल घनवट (शेतकेरी संगठन, महाराष्ट्र के अध्यक्ष); प्रमोद कुमार जोशी (दक्षिण एशिया के निदेशक, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान और कृषि अर्थशास्त्री); अशोक गुलाटी (भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष) और भूपिंदर सिंह मान शामिल थे। हालांकि, बाद में, भूपिंदर सिंह मान ने समिति से खुद को अलग कर लिया था।
क्या है किसान आंदोलन का लक्ष्य?
-बिजली (संशोधन) अध्यादेश (2020) रद्द हो।
-MSP औसत भारित उत्पादन की लागत से 50% अधिक उठे।
-एनसीआर व आसपास में एयर क्वालिटी का निरसन हो।
-कानूनी तौर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करें।
-राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशें लागू हों।
-फार्म यूनियन नेताओं पर दर्ज मामले वापस हों।
-कृषि कार्यों के लिए डीजल की कीमतें 50% घटें।
-तीनों कृषि बिलों का निरसन।
क्या हैं आखिर तीन कृषि कानून और क्या होगा असर?
पहला कानून है- ”कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020”। किसान इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों के बाहर भी फसल को ऊंचे दामों पर बेच सकेंगे। इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदार बिना किसी रजिस्ट्रेशन और बिना किसी कानून के किसानों की फसल खरीद-बेच सकते हैं।
क्या होगा असर?
इससे एपीएमसी मंडियों की प्रासंगिकता खत्म हो जाएगी। कानून में मंडियों के सुधार की जानकारी नहीं दी गई है।
दूसरा कानून है- ”कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020”। इस कानून के लिए सरकार कहती है कि वह किसानों और प्राइवेट कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती के रास्ते खोल रही है।
क्या होगा असर?
कानून के अनुसार पहले विवाद कॉन्ट्रैक्ट कंपनी के साथ 30 दिन के अंदर किसान निपटाए और अगर नहीं हुआ तो देश की ब्यूरोक्रेसी में न्याय के लिए जाए। वर्ना ट्रिब्यूनल के सामने पेश हो।
तीसरा कानून है- ”आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020”। इस कानून के मुताबिक, अब कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी। उपज जमा करने हेतू प्राइवेट इन्वेस्टमेंट की छूट होगी।
क्या होगा असर?
आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 से सामान्य किसानों को फायदा नहीं है। किसान गोदाम बनवाकर नहीं रखते हैं तो फसल को औने-पौने दाम में पूंजीपति आसानी से खरीद लेंगे और मनमुताबिक दाम पर बाजार में बेचकर लाभ कमाएंगे।
कृषि सुधार कानूनों को लेकर जब उग्र हुए किसान: लाल किला हिंसा
तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान दिल्ली में कई जगहों पर पुलिस से भिड़ गए थे। दिल्ली पुलिस ने इससे पहले गणतंत्र दिवस पर किसानों को चुनिंदा रूटों पर ट्रैक्टर परेड करने की इजाजत दी थी। राजधानी में जब किसानों ने पुलिस बैरिकेड्स तोड़े तो कोहराम मच गया था। हालांकि किसानों की इस ट्रैक्टर परेड के दौरान आईटीओ में ट्रैक्टर के पलट जाने से एक किसान की मौत भी हो गई थी।
पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी प्रदेश के हजारों किसान 26 नवंबर 2020 से ही दिल्ली के कई बार्डर (सिंघु, टीकरी, शाहजहांपुर और गाजीपुर) पर कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ धरने पर हैं।
आंदोलन खत्म करने के लिए क्या प्रयास हुए?
आंदोलन खत्म करने के लिए अब तक किसानों के साथ ग्यारह दौर की सरकार बातचीत हो चुकी है। लेकिन इससे कोई हल नहीं निकल पाया है। हाल ही में किसान नेताओं ने कहा कि वे पिछले साल सितंबर में अधिनियमित कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने से कम पर नहीं मानेंगे, साथ ही उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित एमएसपी पर फसलों की खरीद के लिए कानूनी गारंटी देनी होगी।
आंदोलन को लेकर अंतराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:-
कई विदेशी हस्तियों , “किशोर जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग, पॉप गायिका रिहाना, अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस ने किसानों का समर्थन किया। विक्टोरियन संसद सदस्य रॉब मिशेल और रसेल वोर्टले समेत कई श्रमिक नेताओं ने किसानों का समर्थन किया।
क्या है वर्तमान स्थिति?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में किसान आंदोलन पर नाराजगी जताई। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शन पर किसान संगठनों से पूछा कि जब तीनों कानूनों पर रोक लगी है और मामला अदालत में है तो फिर प्रदर्शन क्यों किया जा रहा है?