कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टन विक्रम बत्रा पर आधारित फिल्म ‘शेरशाह’ इन दिनों काफी सुर्खियों में है। ये फिल्म Amazon Prime Video पर रिलीज हो चुकी है। इस फिल्म को बहुत पसंद किया जा रहा है। इस फिल्म में लीड रोल में सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी नज़र आ रहे हैं। जहां, कैप्टन विक्रम बत्रा का किरदार अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा निभा रहै हैं तो वहीं, आडवाणी ने विक्रम की गर्लफ्रेंड डिंपल चीमा का किरदार निभाया है। फिल्म की कहानी को लिखने वाले संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि, इस फिल्म को लिखने के लिए उन्हें काफी रिसर्च करनी पड़ी। इसके लिए उन्होंने विक्रम बत्रा की जिंदगी से जुड़ी, उनके परिवार, दोस्तों से लेकर डिंपल चीमा से भी बात की।
परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा 1999 में करगिल युद्ध के दौरान 16 हजार फीट की ऊंचाई पर दुश्मन से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। उनको न केवल करगिल युद्ध में मर मिटने के लिए याद किया जाता है बल्कि उनकी डिंपल चीमा के लिए उनके बेमिसाल प्यार की वजह से भी उन्हें याद किया जाता है।
विक्रम बत्रा और डिंपल चीमा की पहली मुलाकात 1995 में पंजाब यूनिवर्सिटी में हुई थी। मुलाकात का सिलसिला बढ़ा और दोनों एक-दूसरे को दिल दे बैठे। डिंपल ने एक इंटरव्यू में बताया, ‘मैं विक्रम से पहली बार साल 1995 में चंडीगढ़ की पंजाब यूनिवर्सिटी में मिली थी। हम दोनों ने एमए अंग्रेजी में एडमिशन लिया था। लेकिन हम दोनों ने ही इस कोर्स को पूरा नहीं किया। मुझे लगता है कि ये नियति थी, जो हमें साथ लाने की कोशिश कर रही थी।’
डिंपल ने एक किस्सा शेयर करते हुए बताया, ‘हम दोनों अक्सर मंसा देवी मंदिर और गुरुद्वारा श्री नाडा साहिब जाते रहते थे। एक बार परिक्रमा करते वक्त विक्रम मेरे पीछे मेरे दुपट्टे को पकड़ कर चल रहे थे। परिक्रमा पूरी होने पर उन्होंने मुझे कहा, ‘बधाई हो मिसेज बत्रा। क्या आपको नहीं पता था कि, यह चौथी बार है, जब हम ये परिक्रमा कर रहे हैं?’
दोनों ने फैसला किया था कि कारगिल युद्ध से लौटने के बाद वो शादी करेंगे। लेकिन 1999 में वो शहीद हो गए। इसके बाद डिंपल, विक्रम बत्रा की विधवा बनकर जीने लगी। डिंपल ने कहा कि, ‘पिछले 17 सालों में एक भी दिन ऐसा नहीं हुआ जब मैंने खुद को उससे अलग महसूस किया हो। ऐसा लगता है कि वह किसी पोस्टिंग पर दूर हैं। मैं अपने दिल में जानती हूं कि हम फिर से मिलने जा रहे हैं, बस समय की बात है। जब लोग विक्रम की उपलब्धियों के बारे में बात करते हैं तो मुझे बहुत गर्व होता है। लेकिन दिल के कोने में अफसोस भी होता है कि उन्हें यहां होना चाहिए था। अपनी वीरतापूर्ण कहानियां को सुनना चाहिए था। कैसे आज वो युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।’
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