दिल्ली: MCD एकीकरण के बाद नगर निगम चुनाव में होगी देरी, लग सकता है तीन वर्ष तक का समय!
नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम के एकीकृत होने से अब राजधानी में चुनाव जल्द होने की उम्मीद नहीं है। बता दें विधेयक में वार्डों की अधिकतम संख्या 250 करने का प्रावधान है। इससे नए सिरे से वार्ड बनाने होंगे। इस प्रक्रिया में लगभग एक वर्ष तक का समय लग सकता है। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने विधेयक में कहा है कि नगर निगम बनने के बाद जो जनगणना होगी, उसके आधार पर दिल्ली में वार्ड की संख्या तय होगी।
आपको बता दें, केंद्र सरकार ने विधेयक में प्रावधान किया है कि वार्ड का परिसीमन नई जनगणना के आधार पर होगा। अभी 2021 की जनगणना पूरी नहीं हुई है। एक अनुमान के अनुसार जनगणना की रिपोर्ट आने में दो साल का वक्त लग सकता है। इस सूरत में दो साल पहले नए सिरे से वार्ड नहीं बनाए जा सकते।
2011 की जनगणना के आधार पर वार्डों का परिसीमन करना न्यायसंगत नहीं होगा। वार्डों में वर्ष 2011 की जनसंख्या से अधिक मतदाताओं की संख्या हो चुकी है। इस कारण जनसंख्या एवं मतदाताओं के मामले में वार्डों की स्थिति एक समान नहीं हो सकेगी।
वहीं दिल्ली राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने बताया कि जनगणना रिपोर्ट मिलने के बाद नए सिरे से वार्ड बनाने में कम से कम एक वर्ष समय लगेगा। वर्ष 2016 में वार्डों का परिसीमन करने में पूरा एक वर्ष लग गया था। वार्ड बनाने में जनगणना विभाग से आंकड़े लेने पड़ते हैं। इसके बाद वार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है।
वार्डों के क्षेत्र का प्रारूप बनने के बाद राजनीतिक दलों के अलावा आम जनता से आपत्ति एवं सुझाव प्राप्त किए जाते है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद वार्डों के क्षेत्रों को अंतिम रूप दिया जाता है। संविधान विशेषज्ञ और दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने कहा कि अगर वार्डों की मौजूदा संख्या 272 से घटाई जाती है तो इसके लिए परिसीमन प्रक्रिया की आवश्यकता होगी और उसमें बहुत लंबा समय लगेगा।
बिल में है क्या!
• विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि वर्ष 2011 में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र की विधानसभा द्वारा दिल्ली नगर निगम संशोधन अधिनियम 2011 द्वारा उक्त अधिनियम को संशोधित किया गया था जिससे उक्त निगम का तीन पृथक निगमों में विभाजन हो गया।
• दिल्ली नगर निगम के तीन भागों में विभाजन करने का मुख्य उद्देश्य जनता को अधिक प्रभावी नागरिक सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए दिल्ली में विभिन्न केंद्रों में नगर पालिकाओं का सृजन करना था, फिर भी दिल्ली नगर निगम का तीन भागों में विभाजन राज्य क्षेत्रीय प्रभागों और राजस्व सृजन की संभाव्यता के अर्थ में असमान था।
• इसमें कहा गया है कि समय के साथ तीनों नगर निगमों की वित्तीय कठिनाइयों में वृद्धि हुई जिससे वे अपने कर्मचारियों को वेतन और सेवानिवृत्ति फायदे प्रदान करने में अक्षम हो गए।
• वेतन और सेवानिवृत्ति फायदे प्रदान करने में देरी का परिणाम कर्मचारियों द्वारा निरंतर हड़ताल के रूप में सामने आया जिसने न केवल नागरिक सेवाओं को प्रभावित किया बल्कि इससे सफाई और स्वच्छता से संबंधित समस्याएं भी खड़ी हुईं।
• तीन नगर निगमों की ऐसी वित्तीय कठिनाइयों का परिणाम उनकी संविदा संबंधी और कानूनी बाध्यताओं को पूरा करने में अनियमित विलंब के रूप में हुआ जिसने दिल्ली में नागरिक सेवाओं के बनाए रखने में गंभीर बाधाएं खड़ी कीं।