अक्सर हम जब पूरा हफ्ता काम करते-करते थक जाते हैं, तो वीकेंड पर कहीं घूमने जाना पसंद करते हैं, और जब घूमने की बात हो, तो हमारे दिमाग में सबसे पहले हिमाचल-उत्तराखंड के पहाड़ ही आते हैं। आए भी क्यों न, पहाड़ ऐसी जगह है, जहां किसी को भी सुकून मिल जाता है। वैसे तो शायद आप हिमाचल पहले भी गए होंगे, लेकिन क्या आपने इसे कभी एक्स्प्लोर किया है ?
आज हम आपको हिमाचल के एक ऐसे गांव के बारे में करीब से बताएंगे, जहां जाने से आपको सुकून तो मिलेगा, साथ ही वहां की मिट्टी की खुशबू से आपको कला की सुगंध मिलेगी।
हिमाचल के मशहूर चाय के बागानों से केवल 13 किलोमीटर की दूरी पर, शहर की चकाचौंध से दूर बसे अंद्रेटा गांव में मिट्टी के बर्तन बनाने का काम होता है। यहां आप आएंगे तो आपको, पहाड़ों की खूबसूरती और कला का प्यारा संगम देखने के लिए मिलेगा।
इस गांव में आपको नाट्य, मिट्टी के बर्तन बनाने और चित्रकारी जैसी अलग-अलग कलाएं देखने के लिए मिलेंगी। यहां नोरा सेंटर फ़ॉर आर्ट्स, अंद्रेटा पॉट्री एंड क्राफ़्ट सोसाइटी, नोरा मड हाउस और सर शोभा सिंह आर्ट गैलरी जैसे कई कला-केंद्र आपको देखने के लिए मिल जाएंगी।
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अंद्रेटा गांव का इतिहास मध्य 20वीं सदी से शुरु होता है। यहां सबसे पहले आयरलैंड की प्रसिद्ध थियेटर कर्मी और नाटककार नोरा रिचर्ड्स आकर बसी थीं। ऑक्सफ़ोर्ड से पढ़ाई करके निकली नोरा ने सरकारी कॉलेज के प्रोफ़ेसर फ़िलिप रिचर्ड्स से शादी की और 1908 में लाहौर आ गई। वह अपने कॉलेज की सांस्क़ृतिक गतिविधियों में दिलचस्पी लेने लगीं। इस दौरान वह पंजाबी थियेटर से जुड़ गई जो उस समय अपने शरुआती दौर में था। बाद में वो लाहौर के दयाल सिंह कॉलेज में उप-प्रधानाचार्य बन गई। लेकिन वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता, 1920 में जब फिलिप की बीमारी से मृत्यु हो गई तब उन्हें इंग्लैंड जाना पड़ा। इंग्लैंड में उनका दिल नहीं लगता था।
जब वो उप-प्रधानाचार्या पद पर थीं, तब कला के प्रति उनका उत्साह देखते हुए लाहौर के प्रसिद्ध समाजसेवी दयाल सिंह मजीठा ने नोरा को वापस भारत आने की सलाह दी और नोरा सन 1924 में भारत वापस आ गईं।
नोरा अंद्रेटा गांव में बस गई, जहां वह एक बार अपने पति फ़िलिप के साथ आई थी। उसके बाद उन्होंने वहां 15 एकड़ ज़मीन ली और अपने लिए एक कॉटेज बनवाया। नोरा ने गांव में एक अस्थायी नाट्य मंच तैयार किया, जहां उन्होंने नाटक सीखने और करने के लिए पंजाबी थियेटर के शौकिया और पेशेवर लोगों को बुलाया। बाद में ये गांव ‘मेम दा पिंड’ के नाम से मशहूर हो गया। सन 1940 के दशकों में कई मशहूर कलाकार अंद्रेटा आए।
इसके बाद उन्होंने इंडियन मॉडर्न आर्ट के जानकार बी.सी. सान्याल और प्रोफेसर जयदयाल के साथ मिलकर यहां पॉटरी का काम शुरू किया। नोरा का घर अभी भी यहां स्थित है, जो पुरानी अंग्रेजी शैली में बनाया गया है। घर के बाहर एक छोटा सा आउटडोर थियेटर है जहां वह छात्रों को नाटक करना सिखाती थीं।
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