धारा ३७० हटने के बाद से ही जम्मू एवं कश्मीर का भविष्य अधर में लटका पड़ा है, इसी सिलसिले में केंद्र सरकार ने गुपकार गैंग को मुलाक़ात के लिए बुलाया था जिससे की राज्य के भविष्य की दिशा तय की जा सके। केंद्र सरकार ने महबूबा मुफ़्ती, फारुख अब्दुल्ला समेत अन्य कश्मीरी नेताओं को इस मीटिंग में आने का निमंत्रण दिया, यही बात जम्मू क्षेत्र के लोगो को नागवार गुजरी। उन्होंने जम्मू के प्रतिनिधित्व की मांग करते हुए इस मीटिंग में जम्मू से किसी भी नेता को ना बुलाये जाने का विरोध किया है।
ट्विटर पर चलाया ट्रेंड
जैसे ही मीटिंग का समय नजदीक आने लगा जम्मू निवासियों ने ट्विटर पर #ब्लैकडैफोरजम्मू ट्रेंड करना सुरु कर दिया। किसी ने लिखा की मोदी ने हिन्दुओं की पीट छुरा घोंपा है तो किसी ने कहा की जिनको कभी एंटी नेशनल कहा जाता था आज उन्ही से मुलाक़ात हो रही है। तो कुछ ने आरोप लगाया की जिनको सरकार पाकिस्तान परस्त बोलती थी आज उन्ही के साथ बैठ कर कश्मीर का भविष्य तय कर रही है।
महबूबा मुफ़्ती ने भी किया था मीटिंग का विरोध
केंद्र की तरफ से प्रस्ताव आने के बाद महबूबा मुफ़्ती ने मीटिंग में शामिल ना होने की बात कही थी। उनका कहना था की जब तक भारत सरकार जम्मू कश्मीर का पुराना ओहदा वापस नहीं करती तब तक किसी भी बैठक में शामिल माहि होंगी। लेकिन बाद में अपना निर्णय बदलते हुए उन्होंने मीटिंग में आने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी हालाँकि तब भी उन्होंने केंद्र सरकार को सुझाव देते हुए पाकिस्तान से कश्मीर मुद्दे पर बातचीत शुरू करने का आग्रह किया था।
जम्मू को डोगरा प्रदेश बनाने की मांग क्यों?
दरअसल हिन्दू एवं मुस्लिम समुदाय के अलावा एक कोण डोगरा और कश्मीरियों का भी है। ऐसा मान जाता है की बटवारे के बाद से जो भी हुकूमतें रही है उन्होंने कश्मीरियों का खास ख्याल रखा है वही डोगरा हमेशा से खली हाथ और उपेक्षित रहे है। अगर जम्मू को डोगरा प्रदेश बना दिया जाता है तो ये डोगरा समुदाय और जम्मू के हिन्दू क्षेत्र के लिए नए अवसरों के रस्ते खोल सकता है।
ये लेख लिखे जाने तक मीटिंग जारी थी, हम मीटिंग की सम्पूर्ण जानकारी जल्दी ही आपके साथ साझा करेंगे।