नई दिल्ली: आप ये तो जानते ही होंगे कि हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मौत होने के बाद उसका अंतिम संस्कार किया जाता है। फिर तेरहवीं की जाती है, जिससे आत्मा को मुक्ति मिलती है। लेकिन क्या आप तेरहवीं करने के पीछे की असल वजह के बारे में जानते हैं। तेरहवीं मनाने का महत्व क्या है। साथ ही अगर किसी व्यक्ति की तेरहवीं नहीं की जाए, तो क्या होता है। गरुड़ पुराण में तेरहवीं को लेकर क्या बताया गया है, आइए आज हम इसके बारे में आपको विस्तार से बताते हैं…
क्यों की जाती है तेरहवीं?
गरुड़ पुराण के मुताबिक तेरहवीं मनुष्य जीवन के 16 संस्कारों में अंतिम संस्कारों का एक अंग है। इसके बिना अंतिम संस्कार पूरा नहीं माना जाता। जिस मृतक व्यक्ति की तेरहवीं नहीं की जाती, उसे प्रेत योनि से मुक्ति नहीं मिलती। गरुड़ पुराण की मानें तो किसी व्यक्ति की जब मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा अपने परिवारवालों के आसपास ही भटकती रहती है। ऐसा इसलिए क्योंकि मृतक आत्मा में इतनी शक्ति नहीं होती कि वो मृत्यु लोग से यमलोग का सफर तय कर सकें। इसलिए मृतक के परिजन नियमित पिंडदान करते हैं।
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के 10 दिनों तक जो नियमित पिंड दान होते हैं, उससे मृत आत्मा के अलग-अलग अंगों का निर्माण होता है। फिर 11वें और 12वें दिन शरीर पर मांस और त्वचा का निर्माण होता है। इसके बाद जब 13वें दिन तेरहवीं पर मृतक के नाम से पिंडदान होता है तो इससे ही यमलोक तक का सफर तय करने का बल आत्मा को मिलता है और वो यमदूतों के साथ निकल जाती है।
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गरुड़ पुराण के अनुसार मृत आत्मा को मृत्यु लोक से यमलोक तक जाने में एक साल यानि 12 महीने तक का वक्त लगता है। गरुड़ पुराण की मानें तो मृतक के परिवारवाले जो 13 दिनों में ये पिंडदान करते हैं वो आत्मा के एक साल तक भोजन के रूप में काम आता है।
नहीं किया जाता पिंड दान तो क्या होता है?
जिन मृतक व्यक्ति का पिंडदान नहीं किया जाता, उनके बारे में भी गरुड़ पुराण में विस्तार से बताया गया है। गरुड़ पुराण के मुताबिक जिस मृतक आत्मा के नाम से पिंडदान नहीं होता, उसको तेरहवी के दिन यमदूत घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं। यमलोक में ऐसी आत्मा को काफी कष्टों का सामना करना पड़ता है। जब भूखी आत्मा को यमदूत घसीटते हैं, तब उसके शरीर के कई अंगर छिल जाते है।
वहीं इस बीच भी मृतक के परिजन नियमित पिंड दान या अन्नदान नहीं करते, तो आत्मा को यमलोक के पूरे सफर के दौरान ऐसे कष्ट सहने पड़ते हैं। हालांकि अगर सालभर के अंदर मृतक के परिजन पिंडदान या अन्न दान कर देते हैं, तो इससे आत्मा में बल आ जाता है और यमदूत आत्मा को घसीटना बंद कर देते हैं। आत्मा खुद अपना सफर तय करना शुरू कर देती है।
क्यों कराया जाता है ब्राह्मण भोज?
गरुड़ पुराण में तेरहवीं के दिन कम से कम 13 ब्राह्मणों को भोजन कराने की बात कही गई है। ऐसा इसलिए जिससे मृत आत्मा को यमलोक की दूरी तय करने में भोजन प्राप्त हो। हालांकि परिजनों को ये भोजन अपनी स्थिति के अनुसान ही कराना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने ये भी कहा कि अगर कर्ज लेकर मृत्यु भोज कराया जाता है, तो आत्मा को पूर्ण रूप से मुक्ति नहीं मिलती। आत्मा ये देखकर दुखी होती है कि श्राद्ध आदि कर्म की वजह से उसके परिवार वाले कर्ज तले डूब गए हैं। इसके अलावा गरुड़ पुराण में ये भी कहा गया है कि अगर कोई मृतक के परिजनों को मृत्यु भोज के लिए क्षमता से ज्यादा लोगों को भोजन कराने के लिए विवश करता है या फिर मृत्यु भोज के लिए पैतृक संपत्ति बेचने के लिए कहता है, तो उसको यमदूत कभी माफ नहीं करते। फिर जब उस व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो यमदूत उनको कई तरह की यातानाएं देते हैं और फिर उनको मृत्युलोक भेज देते हैं।