हिन्दू शास्त्रों में सृष्टी के निर्माण से लेकर अंत तक 4 युगों का वर्णन है, जिसमें पहला है सत्ययुग, दूसरा है त्रेतायुग, तीसरा है द्वापरयुग और अंतिम है कलयुग जिसके अंत के साथ सृष्टी का विनाश निश्चित है।
ऐसा कहा जाता है कि जब-जब इस धरती पर अत्याचार बढ़े, तब-तब भगवान विष्णु जी ने कोई ना कोई अवतार लेकर अपने भक्तों की रक्षा की और उस युग का अंत हुआ। इसी को ध्यान में रखते हुए कलयुग के लिए भी कहा जाता है कि जब कलयुग का अंत आएगा तो धरती पर अधर्म धर्म पर हावी होगा।
चारों तरफ अत्याचार बढ़ जाएंगे और हर इंसान एक दूसरे को मारने के लिए उतारू होगा तब भगवान विष्णु जी कल्कि का अवतार लेंगे और कलयुग का अंत हो जाएगा।
लेकिन क्या आपके मन में कभी यह सवाल आया है कि आखिर कलयुग कैसे आया या फिर कलयुग को क्यों आना पड़ा। तो आपको आज की हमारी पोस्ट में अपने सभी सवालों का जवाब मिल जाएगा।
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महाभारत में लिखा है कलयुग का कब हुआ आगमन ?
दरअसल महाभारत में ‘मौसल पर्व’ नाम से एक ग्रंथ है जिसमें यह जिक्र किया गया है कि भगवान श्रीकृष्ण जी की मृत्यु के बाद धरती पर कलयुग ने अपनी सत्ता कायम कर ली थी। जिसमें बताया गया है कि जब कौरव कुरुक्षेत्र का युद्ध हार गए थे।
यादव वंश के अंत की शुरूआत
तब पांडवों के वंशज राजा परीक्षित को हस्तिनापुर का राज-काज दे दिया गया था इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण भी अपनी नगरी द्वारिका लौट गए। इसके बाद यादव-राजकुमारों ने अधर्म का आचरण अपना लिया और मांस मदिरा का सेवन करना शुरू कर दिया।
यादव वंश का अंत
जिसका नतीजा यह निकला कि यादव वंशी राजकुमार भगवान श्रीकृष्ण जी के सामने लड़ने लगे और उन्होंने अपना वंश समाप्त कर लिया और इस सब की वजह बने थे भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब। इसके बाद बलराम प्रभास तीर्थ पर गए और उन्होंने वहीं पर समाधि ले ली।
श्रीकृष्ण का गोलोक गमन
जिसके बाद भगवान श्रीकृष्ण भी दुखी हो गए और प्रभास तीर्थ पर चले गए वहां उन्होंने बलराम को समाधि में देखा और यह देख श्रीकृष्ण भी योगनिद्रा में चले गए। इसी दौरान जरा नाम के एक शिकारी ने तीर चलाया जो भगवान श्रीकृष्ण के तलवे पर लगा जिसकी वजह से श्रीकृष्ण गोलोक चले गए।
द्वापरयुग का अंत
इसकी खबर चलते ही श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव ने भी अपने प्राण त्याग दिए और वह भी अपने लोक चले गए। इसके बाद जब अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण का श्राद्ध हस्तिनापुर में किया तो यह देखकर रुक्मणी, हेमवती समेत श्रीकृष्ण की कई पत्नियों ने भी अपने-अपने प्राण त्याग दिए।
कलयुग का आगमन
जबकि सत्यभामा और दूसरी पत्नियां तपस्या करने वन में चली गई। इसके बाद जब श्रीकृष्ण अपनी जीवन लीला पूरी करके अपने धाम चले गए तब आगमन हुआ कलयुग का। इसके दौरान पांडव भी अपना राज पाठ राजा परीक्षित को सौंपकर स्वर्ग चले गए।
कलयुग और राजा परीक्षित का मिलन
राजा परीक्षित बेहद दयालु किस्म के राजा थे जिसका फायदा उठाया कलयुग ने और वो राजा परीक्षित के पास आकर बोला की उसे रहने के लिए कोई जगह दी जाए। इसके बाद पहले तो परीक्षित ने कलयुग को जगह देने से साफ इंकार कर दिया।
कलयुग का स्थान
लेकिन जब कलयुग ने रोना शुरू किया तो राजा परीक्षित को कलयुग पर दया आ गई और उन्होंने कलयुग से कहा कि तुम 5 जगहों पर रह सकते हो। पहला जहां मद्यपान होता हो, दूसरा जहां पर स्त्री गमन या वेश्यावृत्ति होती हो, तीसरा जहां जुआ खेला जाता हो, चौथा जहां हिंसा होती हो और पांचवा जहां स्वर्ण हो।
कलयुग हुआ राजा परीक्षित के सिर पर सवार
यह सुनते ही कलयुग ने हां कर दी और वह राजा परीक्षित पर सवार हो गया क्योंकि राजा परीक्षित का मुकुट भी स्वर्ण का ही था। फिर कलयुग के सवार होते ही राजा परीक्षित ने एक ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया।
परीक्षित को मिला श्राप
जिसके बाद ऋषि ने परीक्षित को श्राप दिया कि आज तुमने मेरा अपमान किया है, जाओं तुम भी सांप के काटने से मारे जाओगे। इसके बाद सांप के काटने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई और कलयुग का राज धरती पर आ गया और अब कलयुग युगों-युगों से यहीं रह रहा है।