भारत की अखंडता पर बार बार हमले हुए हैं, डच, पुर्तगाल, मुगल और सबसे आखिर में अंग्रेज. जिससे जितना लूटा गया; लूटा. लेकिन कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी. अंग्रेजों से पहले बाकी सब तो शासन करने और सोने की चिड़िया को लूटने की नियत से ही आये थे किन्तु अंग्रेज व्यापार करने आए थे, शासक बन गये.
अंग्रेजों के भारत आने की कहानी अपने आप में बेहद दिलचस्प है. अभी हाल ही में पत्रकार नितिन ठाकुर ने एक ट्विटर पोस्ट के जरिए, इतिहास के इस रोचक तथ्य के बारे में बताया.
कभी-कभी एक छोटी सी घटना इतिहास को दिशा दे देती है। जैसे कि एक दौर में डच लुटेरों से ब्रिटिश व्यापारी तय दर पर मसाले खरीदा करते थे। फिर अचानक एक दिन लुटेरों ने काली मिर्च के दाम में एक पौंड पर पांच शिलिंग बढ़ा दिए जिससे व्यापारी बेहद नाराज़ हो गए। उनका मुनाफा कम हो गया था। बस, चौबीस अंग्रेज़ व्यापारियों ने मिलकर लंदन के लेडनहाल स्ट्रीट के एक जर्जर भवन में बैठक बुला ली। तारीख थी 24 सितंबर 1599. तय हुआ कि 125 व्यापारी मिलकर 72 हजार पौण्ड इकट्ठा करें और अपनी ही कंपनी बनाएं। यही वो कंपनी थी जो आगे चलकर भारत में मसालों समेत और चीज़ों का व्यापार करने लगी। इसी के दो जहाज़ हर महीने भारतीय तटों से मसाले लाकर दो सौ गुना मुनाफे में ब्रिटेन में बेचने लगे। इन्होंने ही मुगल दरबार में सलामी पेश की और आगे चलकर भारतीय मामलों में दखलंदाज़ी करके व्यापार से राजनीति का सफर पूरा किया। कॉलिन्स-लैपियर ने सही लिखा था कि जो मुनीम और सौदागर बनकर आए, वे जनरल और गवर्नर बनकर शासन करने लगे। ना डच डाकुओं ने पांच शिलिंग बढ़ाए होते और ना अंग्रेज़ों ने ईस्ट इंडिया कंपनी बनाई होती।
5 शिलिंग बचाने की नियत से बनी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कब व्यापार करते करते सत्ता हथिया ली, किसी को भनक भी नहीं लगी. जब लगी तो अंग्रेजी दीमक देश को खोखला कर चुकी थी. थोड़ा सा मुनाफा कमाने आयी व्यापारियों की इस टोली को शायद अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि व्यापार के बहाने सत्ता मिल जायेगी
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खैर, इतिहास कल्पनाओं पर सवारी करने का नाम नहीं है, मगर अचंभा होता है जब छोटी घटनाओं के गर्भ से बड़े परिणाम निकलते हैं। एक फोटो लगा रहा हूं।ये ईस्ट इंडिया का निशान था। निशान के नीचे लिखा था- ‘इंग्लैंड के राजा और संसद के आदेश से।