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वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन कब और कैसे करना चाहिए 2023। वैभव लक्ष्मी व्रत विधि, कथा, आरती (Vaibhav Lakshmi Udayapan Vidhi)

वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन कब और कैसे करना चाहिए 2023। वैभव लक्ष्मी व्रत विधि, कथा, आरती (Vaibhav Lakshmi Udayapan Vidhi) :- नमस्कार पाठको आपका हमारी वेबसाइट Duniyakamood पर बहुत बहुत स्वागत है, हम इस लेख में वैभव लक्ष्मी व्रत के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे है जैसे की वैभव लक्ष्मी व्रत की सामग्री , वैभव लक्ष्मी व्रत के फायदे, वैभव लक्ष्मी व्रत कब से शुरू करें 2023, वैभव लक्ष्मी के व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए, वैभव लक्ष्मी व्रत कथा विधि, वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए, वैभव लक्ष्मी व्रत किस महीने से शुरू करें, वैभव लक्ष्मी की पूजा कितने बजे करनी चाहिए इन सारे बिन्दुओ को विस्तार से बताएँगे।

वैभव लक्ष्मीजी का व्रत विशेष रूप से शुक्लपक्ष के शुक्रवार को आरम्भ किया जाता है। यह व्रत विशेषतः शुक्रवार के दिन ही अपनाया जाता है। वैभव लक्ष्मी जी का व्रत किसी भी व्यक्ति द्वारा, चाहे वह कुमारी लड़की हो, महिला हो या पुरुष, अपनी इच्छा शक्ति से किया जा सकता है। जब पति-पत्नी मिलकर वैभव लक्ष्मीजी का व्रत करते हैं, तो माता लक्ष्मीजी अत्यंत प्रसन्न होती हैं और व्रत करने वालों को सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं।

Table of Contents

वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम

वैभवलक्ष्मीजी का व्रत करने से पहले, व्रत के नियमों का पालन करते हुए ही व्रत करना चाहिए।

◆वैभवलक्ष्मी व्रत का आचरण किसी भी महीने के शुक्लपक्ष के शुक्रवार से शुरू करके अपनी इच्छा शक्ति के अनुसार, 7, 11, 21, 31, 51, 101 या अन्य विषम संख्याओं में जब तक आपकी इच्छा पूरी नहीं हो जाती, कर सकते हैं।

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◆व्रत करने वाला व्यक्ति को अपने निवास स्थान पर ही अपने भक्तिभाव और आस्था के साथ वैभवलक्ष्मी जी का व्रत करना चाहिए।

◆अगर व्रती को कहीं और जाना पड़े, तो उस शुक्रवार को व्रत नहीं रखें और अगले शुक्रवार को अपने घर पर ही व्रत करें।

◆यदि किसी परिस्थिति के कारण व्रत नहीं रखा जा सकता, तो अगले शुक्रवार को व्रत रखें।

◆व्रती को अपने मन में किए गए संकल्प के अनुरूप ही व्रतों की संख्या को पूरा करना चाहिए।

◆अंतिम व्रत के दिन, व्रती को शुक्रवार के दिन माता वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

◆व्रती के द्वारा अपनी इच्छा के अनुसार, व्रत पूरा होने पर माता लक्ष्मीजी की पूजा-अर्चना करके, अपनी सामर्थ्य के अनुसार, सप्त (सात) बालिकाओं को अपने घर भोजन करवाना चाहिए।

◆उन कन्याओं से आशीर्वाद भी प्राप्त करना चाहिए और कुछ उपहार स्वरूप वस्त्र और अन्य द्रव्य भी देना चाहिए।

वैभव लक्ष्मी व्रत विधि क्या है

वैभवलक्ष्मी व्रत को करने के पहले, शुद्ध मन और ईमानदारी के साथ सभी आवश्यक वस्त्र और उपकरण पहले ही तैयार कर लेने चाहिए, ताकि व्रत के दौरान बार-बार उठना ना पड़े और पूजा बिना किसी विघ्न के समाप्त हो सके-

◆सबसे पहले, व्रत की कथा का आरम्भ करने से पहले, एक लकड़ी की चौकी (एटरे) पर अक्षत डालकर एक छोटी सी ढेरी बना लेनी चाहिए, उस पर पानी से भरा हुआ एक तांबे का कलश स्थापित करना चाहिए।

◆कलश पर, किसी भी धातु की एक छोटी कटोरी लेनी चाहिए और उसमें पांच धान्य, किसी भी धातु का सिक्का, गहना या चांदी का सिक्का रखकर उस पर डाल देना चाहिए।

◆उसी चौकी पर, श्रीलक्ष्मीजी का श्रीयंत्र, एवं माता लक्ष्मीजी की सभी रूपों की छवि या मूर्ति को स्थापित करना चाहिए।

◆चौकी पर, गाय का शुद्ध घी एक दीपक में भरना और उसमें बती जलाना चाहिए, साथ ही अगरबती भी प्रज्ज्वलित करनी चाहिए।

◆फिर, अपने मन में श्रद्धा और भक्ति के साथ माता लक्ष्मीजी का ध्यान करके, उन्हें अपने पूजा स्थल पर आमंत्रित करना चाहिए।

◆उसके बाद, मन को एकग्र करके, माता लक्ष्मीजी की पूजा आराधना करनी चाहिए।

◆इस प्रकार, जो भी व्यक्ति, चाहे वह महिला हो, पुरुष हो, बच्चा हो या किशोरी हो, पूरी विधि-विनय के साथ पूजा-आराधना करता है, माता वैभवलक्ष्मी बहुत प्रसन्न होती हैं और अपने प्रिय भक्त की सभी मनोकामनाओं को शीघ्र ही पूर्ण करती हैं।

◆नैवेद्य की तैयारी व्रत कथा से पहले:- व्रत कथा को आरम्भ करने से पहले ही, माता लक्ष्मीजी के लिए भोग के रूप में नैवेद्य तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए घर के रसोईघर में किसी भी प्रकार की मिठाई, जैसे कि दूध और चावल से बनी खीर, सूजी का हलवा, गुड़ या चीनी या किसी भी दुकान से खरीदी गई मिठाई, और पांच प्रकार के फल आदि का उपयोग करना चाहिए।

◆पूजा-आराधना करने से पहले, मन ही मन में माता वैभवलक्ष्मी जी का चिंतन करना और उन्हें आमंत्रित करना चाहिए, साथ ही उनकी स्तुति करनी चाहिए।

◆इसके बाद, ध्यानपूर्वक और श्रद्धा के साथ कथा को सुनना चाहिए। कथा समाप्त होने पर, माता वैभवलक्ष्मी जी की आरती करनी चाहिए।

◆आरती करने के बाद, तैयार किए गए नैवेद्य को माता वैभवलक्ष्मी जी के भोग के रूप में समर्पित करना चाहिए, और उसे प्रसाद के रूप में वितरित करना चाहिए, फिर अपना व्रत खोलना चाहिए।

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा

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बहुत पहले की बात है कुशीनगर नाम का एक बहुत बड़ा महा नगर था। कुशीनगर में लाखों लोग निवास करते थे। उस नगर की जीवनशैली और अन्य नगरों की समान ही थी, जिसमें अच्छाई अत्यधिक कम और बुराई बहुत अधिक थी, पुण्य की संख्या कम और पाप अधिक थे।

कुशीनगर में, हरिवंश नामक एक साधारण गृहस्थ अपनी पत्नी दामिनी के साथ सुख-समृद्ध जीवन यापन कर रहा था। हरिवंश और उसकी पत्नी दामिनी, बहुत उत्कृष्ट और संतोषजनक मनुष्य थे। उनमें धार्मिक कार्यों के प्रति गहरी आस्था और विश्वास था। उनका दुनियादारी से से कोई विशेष सम्बन्ध नहीं था, वे अपनी घरगृहस्थी में संतुष्ट थे। पूर्वजों का कहना है, “संकट और अतिथि का आगमन कोई निश्चित समय नहीं होता है, वो कभी भी आ सकते है ।” कुछ समय बाद, दामिनी के साथ ऐसा ही हुआ, जब उसका पति हरिवंश बुरी संगति में पड़ गया और बुरे लोगों की संगति में उलझने लगा।

हरिवंश अपनी गृहस्थी से दूर होता जा रहा था , उसका गृहस्थी में मन नहीं लगता था। वह ख़राब संगति के लोगों के साथ रहते हुए शराब पीने लगा था, और शराब पीकर रात में बहुत देर से घर लौटता था, उसने अपनी पत्नी के साथ बदसलूकी और मारपीट शुरू कर दी थी। यह उसकी आदत बन गई थी। वह वेश्या गमन करने लगा, जुआ खेलने, सट्टे जैसे बुरे कार्यों में शामिल हो गया। इससे उसने अपने जीवन को बुरे तरीके से भ्रष्ट और नष्ट कर दिया। हरिवंश की अधिक धन अर्जित करने की इच्छा से उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई और वह गलत कार्य करने और अपनी वासनाओं को पूरा करने के लिए गलत लोगों के साथ रहने लगा। उसे अच्छे और बुरे के बीच का भेद नहीं समझ आ रहा था। उसकी बुरी संगति के परिणामस्वरूप, उसने अपने घर की सभी संपत्ति बेच दी और उसके घर में कुछ भी बेचने के लिए नहीं बचा। जिन लोगों ने पहले उसे सम्मान दिया करते थे, वे अब उससे दूर हो गए थे और कोई भी उसकी मदद के लिए तैयार नहीं था। उसकी हालत भूखमरी से बिल्कुल भिखारी जैसी हो गई थी। फिर भी, दामिनी बहुत ही संयमी, संस्कारी और आशावादी थी। उसका भगवान पर पूर्ण आस्था और विश्वास था। उसे पता था कि ये सभी परिस्थितियां उसके पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम हैं। दु:ख के बाद अवश्य ही सुख आता है, इस विश्वास के साथ वह निरंतर भगवान की पूजा करती रहती थी और प्रार्थना करती थी कि उसके दु:ख जल्दी समाप्त हो और सुख की प्राप्ति हो। समय अपनी चाल में बदलता जा रहा था और एक दिन दोपहर के समय, उसके घर के दरवाजे पर आवाज आई। दामिनी ने आवाज सुनकर अपनी नींद तोड़ी और उठी। उसे डर लगने लगा कि क्या कोई मेहमान आ गया है, अब उसका अतिथि सत्कार कैसे करेगी मेरे घर में तो कुछ भी नहीं है। उसके पास खाने के लिए एक भी दाना नहीं था, जिसे वह मेहमान की सेवा में प्रस्तुत कर सके। लेकिन उसके पास संस्कारों की वजह से, उसके मन में अतिथि सत्कार करने की इच्छा थी।

तब उसने उठकर घर का दरवाजा खोला। जैसे ही उसने घर का दरवाजा खोला, उसने देखा कि एक दिव्य व्यक्ति उसके सामने खड़ा है। उस दिव्य पुरुष के सफेद घुंघराले बाल थे, और उसका चेहरा उन बालों से ढका हुआ था। उसके चेहरे पर उठी हुई दाड़ी और गेरुएं रंग के कपड़े, उसके चेहरे से एक चमकता हुआ प्रकाश निकल रहा था। उसकी आंखों से ऐसा लग रहा था जैसे अमृत की वर्षा हो रही हो। दामिनी ने उस दिव्य पुरुष को देखते ही समझ लिया कि यह कोई महान सिद्ध पुरुष है।

दामिनी के मन में अतिथि सत्कार की भावना और तेज हो गई, और उसने उस महात्मा को अपने घर में ले आई। जब दामिनी ने उसे अपने फटे हुए आसन पर बैठाया, तो वह लज्जा से जमीन में गड़ी हुई महसूस हुई। वह संत पुरुष दामिनी की ओर निगाहें जमाए बैठे थे। दामिनी ने अपने घर में जो भी थोड़ी-बहुत चीजें बची थीं, उन्हें अतिथि सत्कार के लिए समर्पित कर दिए, लेकिन उन्होंने इसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वह बस दामिनी की ओर आत्मविश्वास और प्रशांतता से देख रहे थे, जैसे उसे कुछ स्मरण कराने का प्रयास कर रहे थे। जब दामिनी ने कुछ समय तक कुछ नहीं कहा, तो उन्होंने कहा, “बेटा, क्या तुम मुझे नहीं पहचान रही हो?” उनके इस सवाल को सुनकर, दामिनी जैसे निद्रा से जाग गई और संकोच करते हुए कोमल स्वर में बोली, “महाराज, मेरी इस अवग्या को क्षमा करें, जिससे मैं आप जैसे दिव्य पुरुष को पहचान करने में विफल हो रही हूँ। पारिवारिक कठिनाइयों ने मेरी सोचने की शक्ति को कमजोर कर दिया है।

लेकिन एक बात निश्चित है कि इस संकट के दौरान मुझे आप जैसे संत पुरुष की सहायता की अवश्यकता है।” तभी दामिनी को लगा जैसे कुछ याद आ गया हो, और वह उस साधु के चरणों में गिर पड़ी और बोल उठी, “महाराज, मैंने आपको अब पहचान लिया है! अपने शुभचिंतक को जो स्नेह का अमृत बरसाते हैं, कैसे कोई भूल सकता है? वास्तव में वह साधु मन्दिर के रास्ते में बनी अपनी कुटिया के बाहर वटवृक्ष के नीचे बैठकर साधना करते थे, और मन्दिर के आगमन-निर्गमन करने वाले सभी भक्त उनका अभिवादन करके खुद को आशीर्वादित महसूस करते थे। दामिनी भी उन्हीं में से एक थी। जब उन्होंने कुछ दिनों से दामिनी को मन्दिर के पास नहीं देखा, तो वह उनकी कुशलता के बारे में जानने के लिए उनके घर की तरफ निकला था।

दामिनी अभी अपने विचारों में मग्न थी कि साधु महाराज ने कुछ कहा, “बेटा, क्या तुम इन दिनों मन्दिर नहीं आती? तुम्हारे साथ जो भी परेशानी है, मुझसे साझा करो, हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ सहायता कर सकू। जब इंसान को दुःख का सामना करना पड़ता है, तो दूसरों की सहानुभूति सबसे ज्यादा चाहिए।” दामिनी अपने आपको रोक नहीं सकी और वह रोने लगी। तभी साधु महाराज ने दयालुता भरे स्वर में कहा, “बेटा, मन को छोटा करने से परेशानियों का हल नहीं होता …सुख और दुःख तो जीवन के दो पहिये होते हैं। ये दोनों हमेशा आते और जाते रहते हैं। दुःख बांटने से मन हल्का हो जाता है।”

कुछ समय चुप रहने के बाद, दामिनी ने अपनी कथा सुरु की, “महाराज! मेरा जीवन सब सुविधाओं से सम्पन्न था। हमारे घर में खुशियों का उत्सव होता था। मेरे पति भी अच्छे और ईमानदार थे। हमारी सादगी और उच्च विचारों पर आधारित जीवनशैली थी। हमें पैसों की कोई कमी नहीं थी। हमारे घर में सुबह और शाम भगवान की आराधना होती थी। लेकिन एक अचानक विपत्ति ने सब कुछ बदल दिया। मेरे पति बुरी संगत में फंस गए और उन्होंने सब कुछ खो दिया। अब मुझे ऐसा लगता है कि मेरा साया भी मुझसे दूर होता जा रहा है। हमारी हालत अब भिखारियों से भी बदतर हो गई है।”

दामिनी की दु:ख भरी कहानी और कठिनाईयों को सुनकर साधु महाराज का हृदय संकोचित हुआ, वह भावपूर्ण स्वर में बोले – “बेटा! हमें जीवन में जो भी कर्म किए हैं, उनका फल भोगना ही पड़ता है – आपके दु:ख और कष्ट भी पिछले जन्म के कर्मों से संबंधित हैं। लेकिन आप चिंता न करें, सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। दु:ख के अनुभव के बाद ही सुख की प्राप्ति होती है और समय सदा एक समान नहीं रहता। दु:ख के बिना सच्चे सुख का अनुभव नहीं होता। आप अपना पूरा विश्वास और श्रद्धा माँ लक्ष्मी में बनाए रखें। माँ लक्ष्मी सभी की उद्धार करने वाली और प्रेम से भरी सागर हैं। वे अपने प्रिय भक्तों पर हमेशा कृपा करती हैं। आप अपने आस्था और श्रद्धा के साथ माँ वैभवलक्ष्मी का व्रत शुरू करें, आपकी श्रद्धा और विश्वास अंत में निश्चित रूप से फल देगा। ‘दामिनी एक बुद्धिमान, ज्ञानी, संस्कारी औरत थी, वह धर्म-कर्म में गहरे विश्वास और आस्था रखती थी

। माँ वैभवलक्ष्मी के व्रत की बात सुनकर उसका चेहरा चमक उठा – ‘महाराज, यदि यह व्रत करने से मेरे परिवार की समस्याएँ दूर हो सकती हैं तो मैं इस व्रत को अवश्य करूंगी। कृपया इस व्रत की पूरी विधि, वैभव लक्ष्मी व्रत कब से शुरू करना है और वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए है, इसके बारे में मुझे बताएं?’

साधु महात्मा दामिनी की श्रद्धा और भक्ति देखकर प्रसन्न होकर बोले – ‘बेटा! मैं आपको माँ वैभवलक्ष्मी के व्रत की विधि बता रहा हूँ, जो संसार के कल्याण के लिए है – जिसे आपको अपने मन को स्थिर रखकर ध्यान से सुनना होगा। माँ वैभवलक्ष्मी का व्रत हर शुक्रवार को किया जा सकता है, सबसे पहले व्रत करने वाले को अपने मन में भगवान को साक्षी मानकर अपनी इच्छानुसार व्रत का संकल्प करना होता है। किसी भी महीने के शुक्लपक्ष के शुक्रवार से यह व्रत शुरू करना चाहिए और अपनी इच्छानुसार तथा अपने संकल्प के अनुरूप इसे पूरा करना चाहिए। माता वैभवलक्ष्मी को मन में नमस्कार करने के बाद व्रत करना चाहिए। व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर, अपनी दैनिक गतिविधियों को पूरा करने के बाद, स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए। इसके बाद, पूर्व दिशा की तरफ मुँह करके अपने बिछौने पर बैठना चाहिए।

उसके बाद, एक लकड़ी का बाजोट लेकर उस पर लाल कपड़ा बिछाएं, उस पर अक्षत या चावल की एक ढेर बनाएं और उस पर पानी से भरा हुआ तांबे का कलश स्थापित करें। तांबे के कलश पर एक छोटी कटोरी रखकर उसे ढक दें। उस कटोरी में कोई चांदी या सोने का आभूषण या रुपए का सिक्का रखें। यदि चांदी या सोने की वस्तु नहीं हो, तो किसी भी धातु या रुपए के सिक्के को रखें। मां वैभवलक्ष्मी जी की किसी भी सभी स्वरूपों वाली तस्वीर या फोटो को बाजोट पर या दीवार पर चिपकाएं। गाय के शुद्ध घी का दीपक और अगरबत्ती या धूपबत्ती को प्रज्वलित करें, मन ही मन में अपनी पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ मां वैभवलक्ष्मी का जाप करते रहें। ‘श्री यंत्र’ को मां लक्ष्मीजी का प्रिय यन्त्र माना जाता है, उसे भी स्थापित करके नमन करें, सभी वस्तुओं पर जल छिड़कें, उसके बाद सभी स्थलों पर हल्दी और कुमकुम का तिलक लगाएं, फिर सभी स्थलों पर चावल और फूल अर्पित करें और कलश देव की पूजा करें। नैवेद्य के रूप में पांच प्रकार के ऋतु फल या किसी भी मिठाई को प्रसाद के रूप में ले सकते हैं। यदि कोई मिठाई या फल नहीं मिले, तो घर में मौजूद गुड़ या चीनी को भी प्रसाद के रूप में ले सकते हैं। इसके बाद अपनी आस्था और भक्तिभाव के साथ मां लक्ष्मीजी की आराधना करें। इसके बाद “जय मां वैभवलक्ष्मीजी की जय हो!” को प्रेमभाव से 14 बार बोलना चाहिए। मन में अपनी इच्छा को माता के सामने रखें और माता से सच्चे दिल से प्रार्थना करें।

इसके बाद प्रसाद को सभी को वितरित करें और खुद भी ग्रहण करें। दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन करके अपने व्रत को पूरा करें। पूजा में रखे गए धन या सिक्के को लाल कपड़े में लपेटकर सुरक्षित स्थान पर रखें। यह सभी वस्त्रागार आगामी शुक्रवारों की पूजा में उपयोगी होंगे। कलश में भरा हुआ पानी तुलसी के पौधे में अर्पित करना चाहिए और चावल को पक्षियों को आहार के रूप में डालना चाहिए। ऐसी शास्त्रीय विधि का पालन करने वालों को जल्दी ही फल प्राप्त होता है। साधु महाराज के मुख से यह कथा सुनकर दामिनी उत्साहित हो गई।

वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए

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वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन विधि :- उनके पैर छूकर, उत्साह से भरी आवाज़ में उसने कहा-‘महाराज, क्यों न आप हमें व्रत की उद्यापन विधि भी सिखा दें! बिना इसके, व्रत अधूरा ही रह जाएगा, ना?’ ‘जरूर बेटा!’ कहकर साधु महाराज उसे व्रत की उद्यापन विधि समझाने लगे- ‘चाहे आपने कितने भी शुक्रवार (सामान्यतः 11 या 21) के व्रत का संकल्प लिया हो, आपके मन में मां वैभवलक्ष्मी के प्रति श्रद्धा और आस्था स्थिर रहनी चाहिए।

◆जिस दिन आखिरी शुक्रवार का व्रत हो, उस दिन उद्यापन शास्त्रीय विधियां मानकर किया जाता है। इस दिन भी, जैसे अन्य शुक्रवारों के दिन पूजा अर्चना करती उसी प्रकार इस दिन भी उसी तरह पूजा और व्रत करना चाहिए।

◆लेकिन इस दिन प्रसाद के रूप में खीर अवश्य बनानी चाहिए। पूजा समाप्त होने के बाद, सात कुमारी कन्याओं के पैर धोकर, कुंकुम का तिलक लगाना चाहिए, उन्हें अपनी क्षमता अनुसार दक्षिणा दें, और फिर प्रसाद के रूप में खीर बांटें।

◆अब, मां वैभवलक्ष्मी के सभी रूपों को मन में ध्यान करते हुए कहना चाहिए- ‘हे मां! यदि मैंने शुद्ध और पवित्र हृदय से आपकी स्तुति करते हुए वैभवलक्ष्मी व्रत का पालन किया है, तो कृपया मेरी मनोकामना (यहां अपनी मनोकामना को याद करें) पूरी करें। जो संतानहीनता को दूर करती हैं, दुःखियों का दुःख हरती हैं, स्थायी सौभाग्य का वरदान देती हैं, और कुमारी कन्याओं को उनके मनपसंद वर प्रदान करती हैं, मां वैभवलक्ष्मी आपकी महिमा अविस्मरणीय है।

◆कृपया हमारी समस्याओं को दूर करें और हमें सुख और समृद्धि प्रदान करें।’ साधु महाराज से वैभवलक्ष्मी व्रत की शास्त्रीय जानकारी प्राप्त करके, दामिनी भावनाओं से ओत-प्रोत हो गई। उसे अपने भीतर एक विशेष और अपरिमित आत्मिक शक्ति का अनुभव होता महसूस हुआ।

उन्होंने भी मां वैभवलक्ष्मी के इक्कीस व्रतों का पालन करने का संकल्प लेते हुए साधु महाराज को सम्मान के साथ विदा किया और मन ही मन में मां वैभवलक्ष्मी की स्तुति शुरू कर दी। केवल दो दिन बाद शुक्रवार का दिन आ गया। उस दिन दामिनी ने अपनी समस्याओं के कारण ठीक से सो नहीं पाई। वह सोच रही थी कि मां वैभवलक्ष्मी के व्रत के कारण उसकी समस्याओं का अंत होगा।

उसने चौकी पर चावल की छोटी ढेरी बनाकर उस पर तांबे का कलश रखा। लेकिन स्वर्णाभूषण रखने की समस्या के कारण वह आपत्ति में पड़ गई। वह उन छोटी सी पायलों को याद करने लगी, जो उसने अपनी भविष्य की सन्तान के लिए बनवाई थीं और पति के नजरो से उन्हें बचाया था। उसने फटाफट वह पायलें निकाली, गंगाजल से धोई और उन्हें शुद्ध करके कलश पर रखी।

उसने प्रसाद के रूप में बची हुई शक्कर निकाली और व्रत का पालन किया। पहले उसने अपने पति को प्रसाद दिया। अगले सप्ताह उसका पति सामान्यतः शांत और सही रहा। घर में कोई विवाद या तनाव नहीं हुआ। इसे दामिनी ने मां वैभवलक्ष्मी के चमत्कार के रूप में लिया और उन्हें मन ही मन धन्यवाद दिया। उसकी आस्था मां वैभवलक्ष्मी में और अधिक बढ़ गई। दामिनी ने शास्त्रीय विधान के अनुसार बीस शुक्रवारों के व्रतों को पूरा किया। उस दौरान, उसका पति बुरी संगति छोड़कर सही रास्ते पर आ गया, और उसके कारोबार में भी सुधार आ गया।
यह सब मां वैभवलक्ष्मी के चमत्कार और दामिनी की आस्था और विस्वास का परिणाम था। इक्कीसवे शुक्रवार को व्रत का उद्यापन करना था। साधु महाराज की बातें अब भी दामिनी के कानों में गूंज रही थीं। उन्होंने बताए गए तरीके के अनुसार ही उद्यापन किया। सात कुवारी कन्याओं को भोजन परोस कर उन्हें दक्षिणा प्रदान देना। अपने आसपास की सौभाग्यवती महिलाओं में प्रसाद बाँटा। माता वैभवलक्ष्मी के हर रूप को याद किया और उनका अभिवादन किया और कहा – ‘माता, आपकी गरिमा अद्वितीय है! आपने मेरे सभी दुःख दूर किए और मेरी सभी इच्छाओं को पूरा किया…मेरा उजाड़ा हुआ घर फिर से बसा दिया है। मेरा यह नवजीवन आपकी ही कृपा है, माता! मैं जीवनभर आपकी आराधना करूंगी और दूसरों को भी आपकी गरिमा के बारे बताउंगी और वैभवलक्ष्मी व्रत रखने के लिए प्रेरित करूंगी।

वैभवलक्ष्मी व्रत का महत्त्व क्या है

◆वैभव लक्ष्मी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में उभरने वाली सभी प्रकार की कठिनाइयों से छुटकारा मिलता है।

◆व्रत करने से मन की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

◆व्रत करने वालों को धन-सम्पदा और समृद्धि प्राप्त होती है।

◆पारिवारिक जीवन में उभरने वाली कठिनाइयों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

◆दांपत्य जीवन का आनंद प्राप्त होता है।

◆अगर किसी की शादी में विलंब या अड़चन हो रही हो, तो उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए, जिससे व्रत के प्रभाव के कारण उनकी शादी निश्चित रूप से हो जाती है।

।।लक्ष्मीजी आरती ।।

ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥

उमा, रमा, ब्रम्हाणी,
तुम ही जग माता ।
सूर्य चद्रंमा ध्यावत,
नारद ऋषि गाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

दुर्गा रुप निरंजनि,
सुख-संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता,
ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

तुम ही पाताल निवासनी,
तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशनी,
भव निधि की त्राता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

जिस घर तुम रहती हो,
ताँहि में हैं सद्‍गुण आता ।
सब सभंव हो जाता,
मन नहीं घबराता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

तुम बिन यज्ञ ना होता,
वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव,
सब तुमसे आता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

शुभ गुण मंदिर सुंदर,
क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन,
कोई नहीं पाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

महालक्ष्मी जी की आरती,
जो कोई नर गाता ।
उँर आंनद समाता,
पाप उतर जाता ॥
॥ॐ जय लक्ष्मी माता…॥

ॐ जय लक्ष्मी माता,
मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत,
हर विष्णु विधाता ॥

।।इति श्री लक्ष्मीजी की आरती।।
।।जय बोलो माता लक्ष्मीजी की जय हो।।

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