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शुक्रवार, दिसम्बर 27, 2024
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“दूध जलेबी खायेंगे खंडवा में बस जाएंगे” – संगीत की दुनिया के महानायक किशोर कुमार का अधूरा सपना

संगीत की दुनिया के महानायक किशोर कुमार को कौन नहीं जानता होगा। यूं तो कई गायक आए और चले गए। लेकिन अपने आवाज से संगीत की दुनिया में राज करने वाले किशोर कुमार के गाने आज भी हर किसी की जुबान पर रहते हैं। किशोर कुमार की आवाज ना होती तो शायद राजेश खन्ना का रोमांटिक अंदाज ना होता, किशोर कुमार की आवाज ना होती तो शायद अमिताभ की अदाकारी में वह बात ना होती। किशोर कुमार की मस्ती भरी आवाज ने कई सितारों की जिंदगी बना दी।

किशोर कुमार का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में हुआ था। इनका 1946 में शिकारी फिल्म से इंडस्ट्री में कदम रखने वाले सिंगर का असली नाम आभास कुमार था, लेकिन स्क्रीन पर उन्हें सब किशोर कुमार के नाम से पहचानते थे। उनके पिता का नाम कुंजालाल गांगुली था और वो पेशे से एक वकील थे। किशोर चार भाई बहनों में सबसे छोटे थे। उनके सबसे बड़े भाई अशोक कुमार मुम्बई में एक अभिनेता के रूप में कम करते थे। उनके एक और भाई अनूप कुमार भी फ़िल्मों में काम कर रहे थे।

गायक और अभिनेता होने के साथ किशोर कुमार लेखक, निर्देशक, निर्माता और संवाद लेखक भी रह चुके हैं। इसके अलावा अन्होंने केवल हिन्दी ही नहीं बंगाली, मराठी, गुजराती, कन्नड़ जैसी कई फिल्मों में भी उन्होंने अपनी आवाज का जादू बिखेरा।

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उन्होंने अपने पूरे करियर में बॉलीवुड को करीब 1500 फिल्मों के लिए गाने दिए हैं। बताया जाता है कि किशोर कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में इंट्रड्यूस करवाने में उनके बड़े भाई अशोक कुमार का हाथ था। 1946 में आई फिल्म शिकारी उनकी पहली फिल्म जरूर थी, लेकिन उन्होंने पहला गाना 1948 की फिल्म ‘जिद्दी’ में गाया। देवानंद इस फिल्म में लीड रोल प्ले कर रहे थे, गाने के बोल थे ‘मरने की दुआएं क्यों मांगू…’
कहा जाता है कि एक दिन उनके घर पर एस.डी. वर्मन, अशोक कुमार से मिलने आए जहां उन्होंने किशोर कुमार को बाथरूम में गाते सुना तो उन्हें किशोर कुमार के गाने का अंदाज काफी अच्छा लगा। उन्होंने किशोर कुमार को बुलाकर कहा ‘आप के. एल. सहगल की नकल न करें। यह बड़े कलाकारों का काम नहीं है। आप खुद अपना एक अलग अंदाज बनाएं’.

इसके बाद किशोर कुमार ने गायकी का एक नया अंदाज बनाया जो उस समय के नामचीन गायक रफी, मुकेश और सहगल से काफी अलग था। किशोर कुमार के लिए 1970 और 80 का दशक बेहद खास रहा। इस दौरान उन्होंने कई ऐसे गीत गाए, जो आज भी लोगों की रुह को छू जाते हैं। जिंदगी एक सफर है सुहाना, ये जो मोहब्बत है, एक रास्ता है जिंदगी और मंजिले अपनी जगह जैसे सैकड़ों गीत हैं। किशोर ने गायकी और अभिनय के साथ कई फिल्मों का निर्माण भी किया। हिंदी सिनेमा में किशोर कुमार एकमात्र ऐसे गायक हैं, जिन्होंने आठ बार सर्वश्रेष्ठ पा‌र्श्व गायक का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। इसके अलावा उन्हें कई और पुरस्कार मिले। एक दो हिट गाने देने के बाद किशोक कुमार को रोक पाना बेहद मुश्किल था।

एक वक्त ऐसा था जब किशोर कुमार ने निर्णय किया की वो फिल्मों से संन्यास लेकर वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे। वह अकसर कहा करते थे कि “दूध जलेबी खायेंगे खंडवा में बस जाएंगे.” लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। 58 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से 13 अक्टूबर, 1987 को उनका निधन हो गया। उनकी आखिरी इच्छा थी की उन्हें उनके गांव खंडवा में ही दफनाया जाए और ऐसा ही कुछ हुआ। किशोर कुमार की मौत से भारतीय सिनेमा जगत को बहुत बड़ा झटका लगा था। भले अब वो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गानों को आज भी लोग बड़े खुशी से सुनते थे।

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