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शुक्रवार, नवम्बर 22, 2024
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यूपी विधानसभा चुनाव: यूपी कांग्रेस पर गहराया संकट का बादल, कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने छोड़ा साथ समाजवादी पार्टी में हुए शामिल.

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 का समय जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सभी पार्टियों में चुनावी रंग दिखने लगे है और राजनीतिक पार्टियों में टिकट की लड़ाई लड़ने वाले नेताओं के बीच दल-बदल का दौर शुरू हो चुका है। बता दें कि इस भगदड़ में सबसे ज्यादा अगर किसी पार्टी को नुकसान हो रहा है तो वह कांग्रेस पार्टी है। बता दें कि कांग्रेस को छोड़ कर पार्टी के कई जिलों के दिग्गज नेताओं ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है।

कांग्रेस के किन नेताओं ने छोड़ा साथ ?

इस कड़ी में पहला नाम है, बसपा सरकार में मंत्री एवं राठ से विधायक रहे धूराम चौधरी का जिन्होंने हाल ही में बहुजन समाज पार्टी को छोड़कर कांग्रेस पार्टी का हाथ थामा था, लेकिन आज से लगभग 6 महीने पहले ही धूराम चौधरी ने फिर से कांग्रेस का हाथ छोड़कर बसपा ज्वाइन कर ली थी।
वहीं, दूसरा नाम बुंदेलखंड क्षेत्र स्थित महोबा विधानसभा से कई बार विधायक रह चुके बाबूलाल तिवारी के बेटे एवं कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश सचिव मनोज तिवारी का है, जिन्होंने लखनऊ में कांग्रेस का हाथ छोड़कर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में सपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है।
वहीं, तीसरा नाम है सबसे ज्यादा मतों के साथ साल 2012 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले राठ विधायक और यूपी कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष गयादीन अनुरागी का, जिन्होंने भी कांग्रेस का हाथ छोड़कर सपा से हाथ मिला लिया है।
वहीं, चौथा नाम है, पूर्व ऊर्जा मंत्री एवं बांदा से कांग्रेस के तेजतर्रार नेता और तीन बार बांदा विधायक रहे 60 वर्षीय विवेक कुमार सिंह के परिवार का, जिन्होंने भी विवेक कुमार सिंह के निधन के उपरांत (उनकी पत्नी मंजुला सिंह और उनके दोनों बेटों ईशान सिंह व यशोवर्धन सिंह) ने कांग्रेस का दामन छोड़कर सहपरिवार सितंबर माह में सपा का हाथ पकड़ लिया था।
इसी कड़ी में पांचवा नाम है, जालौन के दिग्गज कांग्रेसी नेता और पूर्व विधायक विनोद चतुर्वेदी के बेटे, प्रियंका गांधी की सलाहकार कमेटी के पूर्व सदस्य और कांग्रेस के कई पदों को संभाल चुके आशीष चतुर्वेदी का, जिन्होंने भी चुनावों की नजदीकी को देखते हुए अब सपा का हाथ थाम लिया है।
इन सभी के साथ छोड़ने के बाद से यह प्रतीत होता है, कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की राह कांटों भरी हो सकती है और पार्टी को अपना वर्चस्व बचाने के लिए कड़ी स्पर्धा का सामना भी करना पड़ सकता है।

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