पहरेदार से लेकर IIT ग्रैजुएट करने और रांची में IIM में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने तक, रंजीत रामचंद्रन के जीवन का सफर आसान नहीं रहा। रंजीत रामचंद्रन केरल के कासरगोड जिले के एक छोटे से गांव में पत्थर और मिट्टी से बने दो कमरों के शेड में पले-बढ़े। उनके माता-पिता ने केवल कक्षा 5 तक पढ़ाई की थी, लेकिन वो चाहते थे कि उनके बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले।
रामचंद्रन ने जब अर्थशास्त्र में डिग्री हासिल की तब वह कसारगोड़ के पानाथूर में BSNL टेलीफोन एक्सचेंज में पहरेदार की नौकरी करते थे। वह दिन में कॉलेज जाते थे और रात के समय टेलीफोन एक्सचेंज में काम किया करते थे, ताकि उनकी आगे की पढ़ाई आसानी से हो जाए।
डिग्री हासिल करने के बाद उन्हें IIT मद्रास में दाखिला मिला लेकिन उन्हें केवल मलयालम आती थी, जिसके कारण उन्हें काफि मुश्किलें आयी। निराश होकर उन्होंने PHD छोड़ देने का फैसला किया लेकिन उनके गाइड सुभाष ने उन्हें PHD छोड़ने के लिए मना किया। उसके बाद उन्होंने बहुत संघर्ष किया और अपनी पीएचडी की पढ़ाई पूरी की। आज उन्होंने अपनी मेनत के दम पर अपने सारे पूरे किए।
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