27.1 C
Delhi
शनिवार, नवम्बर 23, 2024
Recommended By- BEdigitech

दद्दा ध्यानचंद स्पेशल – ऐसे किस्से जिन्हे पढ़कर मौज आ जाएगी।

आज खेल दिवस है, खेल दिवस माने हॉकी के जादूगर दद्दा ध्यानचंद का जन्मदिन। हॉकी क्या उनके जैसा कलाकार खिलाड़ी दुनिया में शायद ही कभी किसी खेल में हुआ हो। बात ये नहीं है कि उन्होंने कुल जमा 400 से अधिक गोल किये थे इसलिए महान थे, बात ये है कि उन्हें हाथ में स्टिक लेकर उसपे बॉल लगा कर गोल तक पहुँचाना आता था फिर चाहे विपक्षी टीम के सारे 11 खिलाड़ी रास्ते रोकें या विपक्षी मैदान के हालात को बदलकर रोकने कि कोशिश करे, लेकिन उनका नाम जादूगर था ही इसलिए कि एक बार बॉल स्टिक पे आयी तो फिर किसी माई के लाल में दम नहीं जो दद्दा को गोल करने से रोक ले।

आज हम आपके लिए दद्दा से जुड़े कुछ अनसुने किस्से लेकर आये हैं जिनको पढ़कर आपको भरपूर मजा आने वाला है –

जब न्यूजीलैंड ने परिस्थिति बदलकर रोकने कि कोशिश की

वैसे तो कीवी अपने भद्र व्यवहार के लिए जाने जाते हैं लेकिन कई बार हार का डर और विपक्षी की मजबूती आपको बहुत कुछ अटपटा करने को मजबूर कर देती है। हुआ यूँ कि भारत 1935 में न्यूजीलैंड के दौरे पर गया हुआ था, हार के डर से कीवियों ने पेनल्टी एरिया को छोड़ कर बाकी सारे मैदान पर ये सोचकर लम्बी लम्बी घास छुड़वा दी कि घास के रहते ध्यानचंद अपनी स्टिक मैदान पर सही से चला नहीं पाएंगे, लेकिन मेजर साब तो ठहरे जादूगर उन्होंने अपने भाई रूप सिंह के साथ मिलकर ऐसी योजना बनायी कि गेंद को मैदान पर कम और हवा में ज्यादा रखा और दोनों भाइयों ने मिलकर 5 गोल ठोक डाले। इसी स्किल को आधुनिक हॉकी में थ्री डी स्किल कहा जाता है।

Advertisement

चंद्रशेखर आज़ाद को दी थी अपने घर में पनाह

इस घटना को याद करते हुए ध्यानचंद के सुपुत्र अशोक कुमार बताते हैं कि जिस दौर में अंग्रेज आज़ाद जी को पागलों कि तरह ढूंढ रहे थे उस समय ध्यानचंद ने झाँसी में उनको कुछ दिनों के लिए अपने घर पर छुपने को जगह दी थी।

जब अली दारा को रातोंरात बर्लिन बुलवा लिया

खेल में जोड़ियों का जिक्र खूब रहता है अली दारा भी ऐसे ही खिलाड़ी थे जिनके साथ ध्यानचंद अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखा पाते थे, दरअसल 1936 ओलम्पिक से पहले दारा को टीम से बाहर कर दिया गया, ओलम्पिक से पहले प्रदर्शनी मैच में भारत जर्मनी से हार गया, दद्दा ने तुरंत अली दारा को बर्लिन बुलवाने का आग्रह किया, अली दारा आये और भारत ने स्वर्ण पदक जीत कर फैसले को सही साबित किया। बंटवारे के बाद अली दारा पाकिस्तान के लिए भी खेले।

बारिश आयी तो जूते के स्पाइक निकल फेंके

ओलम्पिक १९३६ का फाइनल चल रहा था, ध्यानचंद ने महसूस किया कि बारिश कि वजह से उनके जूते के स्पाइक घास में फस रहे हैं और वो सही से दौड़ नहीं पा रहे हैं, दद्दा ने हाफ टाइम में जूते के स्पाइक निकाल फेंके और रबड़ के जूतों से जिता डाला भारत को ओलम्पिक में स्वर्ण पदक।

नेहरू ने मांगा मेडल तो मिला करारा जबाब

1952 में दद्दा को पदम् भूषण से शुशोभित किया जाना था, नेहरू प्रधानमंत्री के तौर पर उस आयोजन का हिस्सा थे, मेजर की छाती पर कई सारे मेडल देख नेहरू को मजाक सूझा, उन्होंने ध्यानचंद को छेड़ते हुए कहा कि एक मेडल उन्हें भी दे दो, इस पर ध्यानचंद ने पलट कर कहा कि आपकी शेरवानी पर गुलाब ही अच्छे लगते हैं मेडल तो सैनिक के सीने पर ही रहने दीजिये सर।

के एल सहगल से की गोल के बदले गाने की डील

बात 1937 की है, के एल सहगल उस समय सबसे बड़े सुपरस्टार थे, पृथ्वीराज कपूर उनके साथ थे, दोनों मुंबई में गए मैच देखने। दुर्भाग्यवश हाफ टाइम तक भारत कोई गोल नहीं कर पाया। हाफ टाइम पर दद्दा की मुलाक़ात सहगल साब से हुई तो सहगल साब कहने लगे कि हम पहली बार मैच देखने स्टेडियम आये हैं भारत को जिता लाना, इस पर दद्दा ने कहा आपको हर गोल के बदले मैच के बाद मेरे लिए एक गाना गाना होगा, मैच जिताने कि जिम्मेदारी मेरी। बस फिर क्या था दद्दा ने 8 तो उनके भाई रूप सिंह ने 4 गोल कर डाले।

तो ऐसे थे हमारे मेजर ध्यानचंद उर्फ़ दद्दा, बेहतरीन इंसान, शानदार खिलाड़ी, हमेशा हस्ते मुस्कुराते हाज़िर जबाब भारतीय सैनिक। हम उनको बार बार नमन करते हैं।

Related Articles

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Latest Articles