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Wednesday, April 2, 2025
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ईपीएफओ का चारा घोटाला। जलन मे आकर किया भंडाफोड़

मार्च 2020 से जून 2021 के दौरान जब देश की जनता का फोकस बढ़ती महामारी (से लड़ने और लॉकडाउन के बीच खुद को बचाने की थी, वहीं कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के मुंबई कार्यालय के कर्मचारियों ने मिलीभगत करके कथित रूप से 21 करोड़ रुपये के पीएफ फंड घोटाले को अंजाम दिया है. ये फंड एक आम पीएफ था, जिस पर हाथ साफ करने के लिए ईपीएफओ कर्मचारी ने फर्जी निकासी को अपना सहारा बनाया.

इस घोटाले का मास्टरमाइंड चंदन कुमार सिन्हा को पाया गया है. 37 वर्षीय सिन्हा ईपीएफओ के कांदिवली स्थित ऑफिसर में क्लर्क की पोस्ट पर तैनात है और इसने 21.5 करोड़ रुपये का घोटाला करने के लिए 817 खातों का इस्तेमाल किया. ये बैंक खाते प्रवासी मजदूरों के थे, जिनके जरिए 21.5 करोड़ रुपये निकालकर सिन्हा ने अपने खातों में जमा किया.

सूचना से पता चला है कि जिन खातों से पैसे निकाले गए हैं, उनमें से 90 फीसदी पैसा किसी और खाते में स्थान्तरड कर लिया गया है. घोटाले का आरोपी सिन्हा अभी भी फरार हैं और ईपीएफओ कार्यालय के उन पांच कर्मचारियों में शामिल है, जिन्हें घोटाले में शामिल होने के लिए निलंबित कर दिया गया है. सूत्रों ने कहा कि जैसे ही आंतरिक जांच पूरी होगी, ईपीएफओ इस मामले को सीबीआई को सौंप देगा.

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हालांकि आंतरिक जांच अभी कांदिवली कार्यालय पर ही ध्यान हैं, लेकिन इस घोटाले ने ईपीएफओ के सभी दफ्तरों को सूचित कर दिया है. ईपीएफओ क्लाइंट और वित्तीय लेन-देन के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा सोशल सिक्योरिटी ऑर्गेनाइजेशन है. प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ईपीएफओ व्यक्तिगत रूप से बचत की गई 18 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि के लेन-देन को संभालता है. ईपीएफ मेंबरशिप औपचारिक रोजगार का संकेत है.

किसी डकैती की तरह ही ये घोटाला

ईपीएफओ फंड से फर्जी तरीके से निकाला गया पैसा पूल फंड से जुड़ा है, जो ईपीएफओ से जुड़े संगठन प्रत्येक महीने राशि जमा करते हैं. आम तौर पर ईपीएफओ इस पैसे को गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में निवेश करता है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “घोटाले में किसी व्यक्तिगत अकाउंट का दुरुपयोग नहीं हुआ. फर्जीवाड़े में वहीं पैसा निकाला गया है, जो पूल फंड था और यह ईपीएफओ का नुकसान है, किसी व्यक्ति का नहीं. यह एक तरीके से बैंक में डकैती की तरह है.”

घोटाले कितना बड़ा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा रहा है, ईपीएफओ अब अपनी प्रक्रिया को बदलने जा रहा है, ताकि सभी निकासी को सुरक्षित किया जा सके. संगठन ने कांदिवली ऑफिस से हुए कम से कम 12 लाख पीएफ दावा की आंतरिक जांच का भी आदेश दिया है. ये दावा मार्च 2019 से अप्रैल 2021 के बीच हुए हैं.

खराब प्रणाली का हुआ फायदा

अधिकारियों ने कहा कि घोटाले के संदिग्ध प्रणाली की कुछ खामियों के चलते बचने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने कहा कि घोटाले को ऐसे समय अंजाम दिया गया, जब संगठन ने अपने नियमों में ढील दी थी और पीएफ निकासी की पुष्टि और मंजूरी से जुड़े अपने कर्मचारियों को कई जिम्मेदारियां सौंप दी थी. महामारी के चलते पैदा हुई स्थिति में इन लोगों के पास लोगों की निकासी से जुड़े रिकॉर्ड्स के प्रबंधन की जिम्मेदारी भी था।
ऐसे में कर्मचारियों ने पासवर्ड का प्रयोग करते हुए सिस्टम का गलत उपयोग किया, बड़े अधिकारी लॉकडाउन के चलते घर पर थे और उन्होंने पासवर्ड को अपने सह- कर्मचारियों के साथ शेयर किया था. इस स्थिति में पीएफ निकासी की रेंज 1 लाख से 3 लाख के बीच थी, 5 लाख ऊपर से निकासी को सिस्टम हाइलाइट करता है, और ये निकासी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दूसरी बार पुष्टि किए जाने पर ही मंजूर होती है.
ईपीएफओ को अपनी जांच में पता चला है कि कांदिवली शाखा के कुछ अधिकारियों ने घोटाले में चंदन कुमार सिन्हा की मदद की है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “ये शर्म का विषय है कि हमारे अधिकारियों ने अपना पासवर्ड सिन्हा के साथ साझा किया, और उन्हें बाद में इतनी भी परवाह नहीं थी कि पासवर्ड को बदल लें.”

कौन है चंदन सिन्हा

चंदन कुमार सिन्हा ने 2005 में बिहार के गया स्थित मगध विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातक की डिग्री ली थी. जुलाई महीने की शुरुआत में मामला सामने आने के बाद उसने खुद को स्थानीय अस्पताल में भर्ती करा लिया और उसके बाद से गायब है. सिन्हा के साथ पहले संपर्क में रहे ईपीएफओ अधिकारियों ने उसे मिलनसार और तेजतर्रार बताया. एक अधिकारी ने कहा, “हमें मालूम चला था कि उसके पास महंगी कारें और कई सारी स्पोर्ट्स बाइक भी हैं, जिनमें हर्ले डेविडसन भी शामिल है.”

कैसे सामने आया घोटाला

सूत्रों ने बताया कि घोटाले का पर्दाफाश तब हुआ, जब ईपीएफओ को एक अनाम शिकायत मिली, माना जा रहा है कि यह शिकायत सिन्हा के किसी रिश्तेदार ने की थी, जो उसकी जीवन शैली को लेकर ईर्ष्या से भरा था. घोटाले का एक मुख्य किरदार, सिन्हा का मुख्य साथी अभिजीत ओंकर है, जो उसकी तरह की क्लर्क था और कथित रूप से बैंक खाता व्यवस्थित करने में उसकी मदद की.

पैसा निकालने के लिए क्या चाहिए

अधिकारियों ने कहा कि पैसे की निकासी के लिए सबसे पहली चीज खाता नंबर है और उसके बाद खाताधारक की आधार की जानकारी , जोकि ज्यादा प्रवासी मजदूरों के थे, जिन्हें 5 हजार रुपये का कमीशन देकर हासिल किया गया है. अधिकारियों ने कहा कि इतनी जानकारियां हासिल करने के बाद पीएफ खाता को खोला गया. ये खाता उन कंपनियों के थे, जो पहले मुंबई में थी, लेकिन 10 से 15 साल पहले बंद हो गईं. 2014 से पहले के पुराने खाता होने के चलते अनिवार्य UAN नंबर पैसे की निकासी के समय ही बनाया जाता है.

कौन कंपनिया रही निशाने पे

ईपीएफओ ने अपनी जांच में पाया है कि सिन्हा ने बी. विजय कुमार ज्वैलर्स प्राइवेट लिमिटेड, लैंडमार्क ज्वैलरी प्राइवेट लिमिटेड, न्यू निर्मल इंडस्ट्रीज, साथी वीयर कॉरपोरेशन और नेशनल वॉयर्स के अकाउंट पर हाथ साफ किया है. ये सभी कंपनियां 2006 में बंद हो गईं थीं. घोटाले के सामने आने के बाद ईपीएफओ ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को निर्देशित किया है कि वह सिस्टम और प्रक्रिया को चेक करें. इसके साथ ही संगठन ने फैसला किया है कि ईपीएफओ सिस्टम में एक्सेस हासिल करने के लिए सभी कर्मचारियों को दिया गया पासवर्ड सिर्फ 15 दिन ही मान्य रहेगा, अन्यथा कि बदल लिया जाए और ईपीएफओ अब अपने कर्मचारियों को एक साथ कई जिम्मेदारियां नहीं सौंपेगा.

EPFO ने क्या किया?

ईपीएफओ ने घोटाले में इस्तेमाल 817 बैंक खातों से संबंधित बैंकों को भी पत्र लिखकर फर्जीवाड़े के जरिए ट्रांसफर किए गए पैसे को फ्रीज करने को कहा है. घोटाले में अभी तक सिर्फ 2 करोड़ के करीब पैसा रिकवर किया गया है. इसके साथ ही ईपीएफओ सभी आरोपी अधिकारियों की संपत्ति को भी अटैच करने की योजना बना रहा है. एक अधिकारी ने कहा कि घोटाले को देखते हुए ईपीएफओ सीआरपीसी के तहत आरोपी अधिकारियों की सैलरी से पैसे की रिकवरी के बारे में विचार कर रहा है.

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