ज्योतिष शास्त्रों में ग्रहों को मजबूत करने के लिए रत्नों का प्रयोग सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। कुंडली में कमजोर ग्रहों के शुभ प्रभाव को पाने के लिए भी रत्न धारण किए जाते हैं। शास्त्र में हर ग्रह के लिए अलग-अलग रत्न धारण करने की सलाह दी जाती है। लहसुनिया रत्न केतु के अशुभ प्रभाव के लिए धारण किया जाता है। जिन लोगों की कुंडली में केतु की दशा अच्छी नहीं होती, उनके लिए यह रत्न लाभकारी होता है।
इस रत्न के प्रभाव से इंसान में आध्यात्मिक गुणों का विकास होता है। इसके अलावा इस रत्न से व्यापार में लाभ भी मिलता है। शेयर बाजार के काम से जुड़े लोगों के लिए भी यह रत्न बेहद लाभकारी बताया गया है।
बिजनेस में लाभ
शेयर बाजार या जोखिम भरे निवेश करने वालों को यह रत्न लाभकारी होता है। रत्न शास्त्र के मुताबिक इस रत्न के प्रभाव से जोखिम भरे निवेश के काम आसान हो जाते हैं। साथ ही इंसान का भाग्य भी चमकता है। अगर किसी इंसान को बिजनेस में तरक्की नहीं हो रही है तो उसके लिए यह रत्न बेहद लाभकारी साबित होता है। लहसुनिया रत्न धारण करने के बाद व्यापार में फंसा हुआ पैसा वापस मिल जाता है। साथ ही इस रत्न से सुख-सुविधा के साधनों में वृद्धि होती है। धर्म-अध्यात्म से जुड़े लोगों के लिए भी लहसुनिया लाभकारी होता है, लहसुनिया के प्रभाव से सेहत से जुड़ी समस्या भी खत्म हो जाती है। इसके अलावा मानसिक परेशानी, लकवा और कैंसर जैसी बीमारियों में भी यह रत्न लाभदायक है।
लहसुनिया धारण करने के नियम
लहसुनिया रत्न का आकार और वजन के हिसाब से प्रभाव पड़ता है। ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक इस रत्न को हमेशा के लिए धारण नहीं किया जाता है। जब कुंडली में केतु गलत स्थान पर है और अशुभ परिणाम दे रहा है तो तभी इस रत्न को पहना जाता है। इंसान के वजन के मुताबिक इसे धारण करने की सलाह दी जाती है। उदाहरण के लिए अगर कोई इंसान 60 किलो का है तो उसे लगभग 6 कैरेट या रत्ती का रत्न धारण करना चाहिए। आमतौर पर 2.25 कैरेट से लेकर 10 कैरेट तक का लहसुनिया धारण किया जा सकता है।
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